प्रकृति प्रेम व रिश्तों की माधुर्यता का दिखा संगम
प्रकृति प्रेम, रिश्तों की माधुर्यता व आस्था का मिला-जुला संगम एक साथ देखने को मिला श्री गोवर्धन पूजनोत्सव, अन्नकूट व भैयादूज में। लोकरीतियों के अनुसार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा व द्वितीया को मनाए गए उक्त पर्वों में आस्था के साथ-साथ लोक परंपराओं का भी अछ्वुत समन्वय रहा। समन्वय भी ऐसा जिसने उक्त तीनों पर्वों को एकाकार करते हुए खिचड़ी सा रूप दे डाला है। पूरी तरह से वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित इन महान पर्वों की परंपरा के साथ आस्था पूर्वक जुड़ी आधी आबादी रिश्तों की संवेदना, पारिवारिक जिम्मेदारी व प्रकृति के प्रति उत्तरदायी भारतीय नारी की अछ्वुत ममतामयी समन्वित झलक प्रस्तुत कर रही थी।
जागरण संवाददाता, मऊ : प्रकृति प्रेम, रिश्तों की माधुर्यता व आस्था का मिला-जुला संगम एक साथ देखने को मिला श्री गोवर्धन पूजनोत्सव, अन्नकूट व भैयादूज में। लोकरीतियों के अनुसार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा व द्वितीया को मनाए गए उक्त पर्वों में आस्था के साथ-साथ लोक परंपराओं का भी अदृभूत समन्वय रहा। समन्वय भी ऐसा जिसने उक्त तीनों पर्वों को एकाकार करते हुए खिचड़ी सा रूप दे डाला है। पूरी तरह से वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित इन महान पर्वों की परंपरा के साथ आस्था पूर्वक जुड़ी आधी आबादी रिश्तों की संवेदना, पारिवारिक जिम्मेदारी व प्रकृति के प्रति उत्तरदायी भारतीय नारी की अदभूत ममतामयी समन्वित झलक प्रस्तुत कर रही थी।
गुरुवार व शुक्रवार को जिले में शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण, स्थान-स्थान पर प्रत्येक मुहल्ले में महिलाओं की गोष्ठियां लगीं। इसके पूर्व गोष्ठी स्थल को गाय के गोबर से लीपकर वहां गोवर्धन पर्वत देव के साथ ही पर्वतीय परिवार से जुड़े जीव जंतुओं की आकृति बनाई गई एवं जंगली वनस्पतियां एकत्र कर उन्हें समर्पित किया गया। गोष्ठी में एकत्र महिलाओं ने प्रकृति से जुड़े अदभूत पर्व गोवर्धन पूजा की परम्परा का निर्वहन करते हुए उससे संबंधित कथा का श्रवण किया। इनसेट--माता अन्नपूर्णा को समर्पित अन्नकूट महोत्सव की मान्यता है कि माता अन्नपूर्णा का पूजन करने से वर्ष पर्यंत घर में अन्न-धन की कमी नहीं होती। भगवान आशुतोष भोले भंडारी शिव ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षादान लिया था। श्रद्धालु महिलाओं ने 'अन्नकूट महोत्सव' गोवर्धन पूजा स्थल पर ही मनाया। ईंट पर नए धान का लावा, सुपारी, पान आदि को कूटकर माता अन्नपूर्णा देवी की स्तुति करते हुए वर्ष पर्यंत धन-धान्य पूर्ण स्वस्थ पारिवारिकजीवन की कामना की। बच्चों ने दूसरे दिन भी पटाखे छोड़कर पर्व के उत्तरार्द्ध का आनंद उठाया। इनसेट..
भैयादूज : बहनों की भाइयों के दीर्घायु की कामना
भाई की दीर्घायु के लिये की कामना पर्वों की त्रिवेणी के अवसर पर भैया दूज व्रत का पालन करती हुई कुमारी कन्याओं एवं महिलाओं ने अपने भाइयों की दीर्घ जीवन की कामना किया। बहनों ने भाई को तिलक लगाए और उनकी लंबी आयु हेतु कपास व सरपत के झुरमुटों में गांठें बांधने की परंपरा का पालन किया। यथासंभव भाई भी अपनी विवाहिता बहनों के घर जाकर भोजन किए तथा उन्हें उपहार भेंट किए। अनेक भाई-बहन भैयादूज पर यमुना नदी में एक साथ स्नान करने की परंपरा निभाने के लिए एक दिन पूर्व ही मथुरा के लिए प्रस्थान कर चुके थे। मान्यता है कि यमुना में भाई-बहनों के एक साथ स्नान करने से दोनों परिवारों का कल्याण होता है तथा रिश्तों की माधुर्यता एवं आयु में वृद्धि होती है। लोकरीतियों के अनुसार बहनों ने पहले अपने भाइयों को श्राप दिया, फिर इसके प्रायश्चित लिए अपनी जीभ को कांटों से छेदा और फिर दीर्घायु के लिए भगवान से प्रार्थना की। इसी दिन पिड़िया व्रत के लिए भी बहनों ने पिड़िया बनाकर रखा।