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¨हदी के उत्थान एवं राजभाषा के लिए सदन में गरजे थे अलगू

शैलेश अस्थाना, मऊ : मंदिर के शीर्ष पर ज्योति-कलश अपनी आभा से आकर्षित करता है पर उसक

By JagranEdited By: Published: Thu, 13 Sep 2018 11:02 PM (IST)Updated: Thu, 13 Sep 2018 11:04 PM (IST)
¨हदी के उत्थान एवं राजभाषा के लिए सदन में गरजे थे अलगू

शैलेश अस्थाना, मऊ :

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मंदिर के शीर्ष पर ज्योति-कलश अपनी आभा से आकर्षित करता है पर उसकी आधार शिला के नीचे पड़ा प्रस्तर खंड पर उसकी समूची विभूति टिकी होती है। पं. अलगू राय शास्त्री राष्ट्र मंदिर एवं राजभाषा ¨हदी के ऐसे ही प्रस्तर थे। 21 नवंबर 1949 को संविधान सभा की अंतिम बैठक में उन्होंने कहा था कि 'जिस भाषा में यह विधान बना है वह जनता की भाषा नहीं है। जनता की भाषा वह है जिसमें सूर की कविताएं और तुलसी का महाकाव्य है।' ¨हदी सत्याग्रह कर रहे नागरिकों पर पंजाब के फिरोजपुर में किए गए अत्याचार से पीड़ित होकर वह रो पड़े थे। उन्होंने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को लोकसभा सदस्य की हैसियत से ऐसा प्रतिवेदन प्रेषित किया कि पीएम ने पंजाब के मुख्यमंत्री को कड़ा निर्देश दिया और सीएम झुके।

स्वतंत्रता संग्राम में पं. नेहरू एवं लालबहादुर शास्त्री के हमकदम रहे, अग्रिम पंक्ति के स्वातं‌र्त्य वीर पं.अलगू राय शास्त्री ¨हदी के वरदपुत्र थे। वे महज उच्चकोटि के साहित्यकार ही नहीं वरन ¨हदी को राजभाषा का दर्जा दिलाने को परतंत्र भारत से लेकर स्वतंत्र भारत तक में संविधान सभा में आवाज उठाने वालों में अग्रणी रहे। सदन में अपनी संबोधन शैली ही नहीं वरन लेखन के माध्यम से भी उन्होंने ¨हदी पुत्र होने का प्रमाण दिया है। संविधान सभा में बतौर सदस्य से लगायत सदन तक ¨हदी को राजभाषा बनाने के पीछे उनके दिए गए ऐतिहासिक तर्को में ही ¨हदी का उज्ज्वल भविष्य दिख गया था।

29 जनवरी 1900 को जनपद के अमिला गांव में कृषक परिवार में पैदा पं.अलगू राय शास्त्री ने बाल्यकाल में ही अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। अनेक बार जेल यात्रा करने वाले पं.अलगू राय ने कारावास में तमाम ग्रंथों की रचना किया। बाद में संविधान सभा, लोकसभा एवं राज्य सभा के सदस्य व मंत्री बनने के बाद लेखन कला प्रभावित हुई पर उनकी कृतियां आज भी शोध का विषय हैं। पंडित जी की कविताओं का प्रथम संग्रह 'शांति प्रताप' वर्ष 1923 में प्रकाशित हुआ। 1930 में 600 पृष्ठों का 'शंकर के वेदांत दर्शन' का ¨हदी में अनुवाद किया। 1932 में 1200 पृष्ठों का 'सर्वदर्शन' ग्रंथ रचा। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के काव्य संग्रह 'साकेत' की धारावाहिक समालोचना पत्रिका 'तपोभूमि' में वर्ष 1933 में प्रकाशित हुई तो साहित्य जगत के अनमोल सितारे बने। वर्ष 46 में 'ऋगवेद रहस्य' की रचना कर अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया। प्रदेश सरकार ने उन्हें इस कृति के लिए 'मंगला प्रसाद' पारितोषिक प्रदान किया। कार्ल मा‌र्क्स के दर्शन पर स्वतंत्र लेखन के बाद उन्होंने 'दास कैपिटल' का ¨हदी अनुवाद भी किया।


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