गांवों में किसान बे रोक-टोक जला रहे पराली
जिले का शायद ही कोई गांव ऐसा हो जहां न जली हो पराली - अपने ही हाथ से खेत की उर्वरा शक्ति नष्ट कर रहे किसान - प्रशासन बना है मूकदर्शक, रोज-रोज उठ रहा है खेतों से धुआं
जागरण संवाददाता, मऊ : पराली जलाने को लेकर पूरे देश में हायतौबा मची है। यहां तक कि पराली जलाने को कानूनन वर्जित कर दिया गया है, लेकिन जिले भर में कहीं इस पर अंकुश लगता नजर नहीं आ रहा है। मझले किसान हों या सीमांत सभी मजदूरों का रोना रोते हुए पराली जलाने से बाज नहीं आ रहे हैं। सुबह से शाम तक धान की फसल कटे खेतों से धुआं उठ रहा है, लेकिन प्रशासन की ओर से पराली जलाना रोकने को लेकर कहीं कोई तत्परता देखने को नहीं मिल रही है।
गेहूं की जल्दी बुआई के चक्कर में अधिकांश सीमांत किसान अपने खेतों में फसल कटने के बाद बची पराली जला दे रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरों का लगातार बढ़ता अभाव और पराली जलाने के खिलाफ जागरूकता कम होने से किसान पराली खेत में ही जला दे रहे हैं। एक किसान ने बताया कि धान की फसल काटने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं। कंबाइन मशीन से धान काटने पर पराली खेत में ही रह जा रही है। रोटावेटर से भी जोतने पर पराली पूरी तरह नष्ट नहीं हो रही है। कृषि विज्ञान केंद्र पिलखी के वैज्ञानिक डा.वीके ¨सह ने कहा कि पराली खेत में ही जलाना कानूनन प्रतिबंधित है। पराली जलाने से जहां प्रदूषण बढ़ रहा है, वहीं खेतों की उर्वरा शक्ति भी नष्ट हो रही है। किसानों को इससे बचना चाहिए।
इनसेट :
पराली से निकलता धुआं बना रहा बीमार
जासं, मधुबन (मऊ) : देश मे बढ़ते प्रदूषण व मृदा क्षरण के चलते खेत में पराली जलाने पर प्रशासनिक रोक व जागरूकता अभियान स्थानीय तहसील क्षेत्र में औंधे मुंह गिर गया है। किसान अपने व समाज के नुकसान की परवाह किए बगैर पराली जला रहे हैं। खेतों के बगल से होकर गुजरने वाला प्रशासन खेत में पराली जलता देखकर भी बेखबर बना हुआ है। पराली जलाने से उठने वाले धुएं से प्रदूषण फैल रहा है। वहीं, आग की चपेट मे आकर मिट्टी के मित्र कीट भी जलकर नष्ट हो जाते हैं। नमी भी समाप्त हो जाती है। इससे मिट्टी की सेहत काफी खराब हो जाती है। पराली जलाने पर सिर्फ रोक ही नहीं है, बल्कि कृषि विभाग की तरफ से किसानों को जागरूक करने के लिए स्थानीय तहसील क्षेत्र में बीते दिनों बच्चों के बीच पें¨टग प्रतियोगिता भी कराई गई थी। लेकिन यह कवायद केवल हर अभियान की भांति रस्म अदायगी बनकर सिमट गई। स्थानीय बाजार से जनपद मुख्यालय जाने वाले शहीद मार्ग से दर्जनों प्रशासनिक अधिकारी प्रतिदिन गुजरते हैं और पराली जलते देखते हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती है।