देवारा की नियति बन चुकी है आग व बाढ़ से तबाही
देवारा की उर्वरा भूमि गन्ने के पैदावार और उसका वातावरण दुग्ध उत्पादन के लिए विख्यात है लेकिन आज भी यहां के ग्रामीणों का दैवीय आपदा के रूप में पीछा कर रही नियति ने नहीं छोड़ा है।
जागरण संवाददाता, मधुबन (मऊ) : स्थानीय तहसील क्षेत्र के देवारा की उर्वरा भूमि गन्ने के पैदावार और उसका वातावरण दुग्ध उत्पादन के लिए विख्यात है लेकिन आज भी यहां के ग्रामीणों का दैवीय आपदा के रूप में पीछा कर रही नियति ने नहीं छोड़ा है। बाढ़ और अग्निकांडों से बचाव का कोई ठोस उपाय नहीं होने के चलते हर वर्ष ग्रामीणों को भारी क्षति का सामना करना पड़ता है। इस क्षति की भरपाई करने में ही देवारावासियों की पूरी जिदगी गुजर जाती है। हर बार के चुनाव में मैदान में उतरने वाले राजनीतिक दलों के नेताओं का आश्वासन आज तक हवा में ही लटका रहा है।
क्षेत्र के नुरुल्लाहपुर से लेकर परसिया जयरामगिरी मूसाडोही तक घाघरा की तलहटी में बसा देवारा कई पुरवों में विभक्त है। यहां के लोग मुख्यत: खेती और दुग्ध उत्पादन पर निर्भर है। देवारा में प्रति वर्ष आने वाली बाढ़ और घाघरा नदी के कटाव के चलते फूस से बनी झोपड़ी ग्रामीणों का आशियाना और फूस से बने खोप इसके अनाज रखने का साधन होता है। गर्मी के मौसम में फूस से बनी मड़ई और खोप इनकी बर्बादी का कारण बनते हैं। क्षेत्र के कठघराशंकर में कई दशक पूर्व से फायर स्टेशन के लिए भूमि आरक्षित होने के बाद भी फायर स्टेशन मूर्त रूप नहीं ले सका है। इसके चलते हर वर्ष अग्निकांडों की भीषण घटनाएं उनके ऊपर कहर बनकर टूटती हैं। गांव के गांव जलकर राख हो जाते हैं। धन-जन की हानि होती है। प्रत्येक चुनाव में अग्निकांडों की समस्या और फायर स्टेशन के स्थापना का मुद्दा जोर-शोर से उठता है लेकिन चुनाव समाप्त होने के साथ ही मुद्दा भी समाप्त हो जाता है। अलबत्ता फायर ब्रिगेड की छोटी गाड़ी गर्मी के मौसम में भेजकर जिम्मेदारी पूरी कर ली जाती है जो आग से बचाव में नाकामी साबित होगा है। देवारा के ग्रामीण इलाकों दुबारी, लोकया, नुरुल्लाहपुर, जरलहवा में अभी पिछले वर्ष ही अग्निकांडों ने अभी से कहर बरपाना शुरू कर दिया है।
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इनसेट-- जागरूकता का अभाव क्षेत्र को प्रत्येक वर्ष अगलगी की भीषण घटनाओं का सामना करना पड़ता है। इसमें कहीं न कहीं जागरूकता का अभाव भी है। क्षेत्र में गर्मी के दिनों में जितनी भी अगलगी की घटनाएं घटित होती हैं। इसमें लापरवाही भी मुख्य कारण के रूप में उभर कर सामने आती है।
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इस वर्ष जगी है उम्मीद फायर स्टेशन की
क्षेत्र के कठघराशंकर में लगभग तीन दशक पूर्व फायर स्टेशन के लिए भूमि आवंटित की गई थी। तभी से प्रत्येक चुनाव में फायर स्टेशन बनवाने का मुद्दा भी जोर पकड़ता रहा लेकिन ठोस प्रयास के अभाव में आज तक फायर स्टेशन का मामला धूल फांकता रहा है लेकिन इस बार यह उम्मीद शायद मूर्त रूप ले सकेगी। मुख्य अग्निशमन अधिकारी सुभाष कुमार ने बताया कि फायर स्टेशन को स्वीकृति मिल गई है। चुनाव बाद धन आवंटित हो जाने की उम्मीद है।