तुम खुश रहो, मेरी हर मुस्कान तुमसे है ब्रजवासियों
विनीत मिश्र मथुरा मैं यमुना अपने कान्हा की पटरानी। दशकों बाद मेरे आंचल का नीर साफ है। प्रदूषण से मैं कराह रही थी लेकिन लॉकडाउन ने तो जैसे मुझे नई जिदगी दे दी। मेरे आंचल में जब साफ पानी हिलोरें लेता है तो यकीन मानिए उसकी हर लहर पर मेरा मन भी खुशी से कुलाचें मारता है। हो भी क्यों न मैंने तो वह दिन भी देखे हैं जब मेरी देहरी पर अटी गंदगी और सड़ांध में दूर से आने वाले श्रद्धालु भी बिना आचमन लौटते थे। एक मां के लिए इससे दुखदायी क्या होगा कि उसके अपने चाहकर भी उसका आचमन नहीं कर पा रहे।
विनीत मिश्र, मथुरा : मैं यमुना, अपने कान्हा की पटरानी। दशकों बाद मेरे आंचल का नीर साफ है। प्रदूषण से मैं कराह रही थी, लेकिन लॉकडाउन ने तो जैसे मुझे नई जिदगी दे दी। मेरे आंचल में जब साफ पानी हिलोरें लेता है, तो यकीन मानिए उसकी हर लहर पर मेरा मन भी खुशी से कुलांचे मारता है। हो भी क्यों न, मैंने तो वह दिन भी देखे हैं, जब मेरी देहरी पर अटी गंदगी और सड़ांध में दूर से आने वाले श्रद्धालु भी बिना आचमन के लौटते थे। एक मां के लिए इससे दुखदायी क्या होगा कि उसके अपने चाहकर भी उसका आचमन नहीं कर पा रहे।
मेरे अपनों को याद होगा सोमवार को गंगा दशहरा है। मुझे बीता हर साल याद है, जब गंगा दशहरा पर दूर देश से आए लोग मेरी गोद में स्नान करते थे और उसके बाद दान-पुण्य करते थे। अपनों को गरीबों की मदद करते देखती तो मन ही मन खुश होती थी। आज फिर गंगा दशहरा है। गंदगी से अटे रहने वाले घाट साफ हैं, तो फैक्ट्रियों से निकलने वाला कचरा न आने से पानी भी स्वच्छ। लेकिन मेरे अपने नहीं हैं, बस इसीलिए मन व्यथित है। मैंने अपने जीवनकाल में ब्रजवासियों को पीड़ा में देखा, तो उससे उबरकर खुशियों की सेज पर नर्तन करने की गवाह भी मैं हूं। लेकिन, कोरोना ने खुशियां छीन लीं। ढाई माह से अपनों का इंतजार कर रही हूं। सोमवार को ये पहला मौका होगा, श्रद्धालु नहीं होंगे। मैं जानती हूं कि दूर से आने वाले श्रद्धालु मेरे पास आना तो चाहते हैं, लेकिन मजबूरी है। उनकी मजबूरी समझ उन्हें दूर से ही खुश रहने का आशीष दूंगी। ..और कर भी क्या सकती हूं। मेरे ठाकुर बांकेबिहारी की देहरी भी सूनी है। गंगा दशहरा पर हजारों भक्त ठाकुर जी के दर्शन करते, तो मैं भी आह्लादित हो जाती थी। यही वह दिन है, जब ठाकुर जी राजा के भेष में चाहने वालों को दर्शन देते हैं, ठाकुर जी कल भी दर्शन देंगे, लेकिन लॉकडाउन के कारण श्रद्धालु नहीं होंगे। इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ, बस यही दुख अंदर ही अंदर परेशान किए है। मैंने हजारों श्रद्धालुओं को तीर्थस्थल वृंदावन की परिक्रमा कर जयकारे लगाते देखा है, लेकिन सोमवार को यहां भी भक्तों की पदचाप शायद ही सुनाई दे। मेरा ब्रज ऐसा न था, यहां तो कण-कण में आराध्य बसते हैं और हर जन में उनका नाम। मैं अपनों की मजबूरी समझती हूं, हो सकता है कुछ श्रद्धालु मेरे आंचल में स्नान करें, पूजन करें, लेकिन मैं सबसे ये कहती हूं कि जरूरतमंद को दान जरूर करें, ताकि इस आपदा में उनके घर भी चूल्हा जल सके। सब खुश रहें, मेरी ठाकुर जी से यही कामना है। हां, ब्रजवासियों में पर्व का वह उल्लास नहीं होगा, ये दुख जरूर है, लेकिन जब आप स्वस्थ रहेंगे, तो आपकी खुशी देखकर ही मेरे आंचल में उल्लास की तरंगें उठेंगी। आप सबको एक बार फिर गंगा दशहरा की शुभकामनाएं।
राधे-राधे।