मनरेगा में तीन दिन काम, घर बैठा खाली हाथ
कोरोना की आफत में दिल्ली में उद्यम छोड़ कर आए मजदूर को नहीं मिल रहा कोई काम चौतरफा मार चार साल पहले मनरेगा में काम करने के लिए जॉब कार्ड बनवाया था जॉब कार्ड के साथ दी गई पासबुक में खाता संख्या फीडिग में गड़बड़ हो गई
संवादसूत्र, मथुरा : देश की राजधानी के गली-कूचों में घर परिवार की खुशहाली की उम्मीद लिए दिन भर कबाड़ इकट्ठा करने वाले मजदूर अपनी ही धरा पर आज लाचार और बेबसी झेल रहे हैं। दो वक्त की दाल-रोटी जुटाने के लिए मजदूरी मिलने की राह ताक रहे हैं, पर उम्मीद की कोई किरण दिखाई नहीं दे रही है। ऐसी ही आफत झेल रहे हैं महावन तहसील क्षेत्र के नगला पोला के रहने वाले चंद्रपाल। तीन दिन मनरेगा में काम मिला और अब वह भी छूट गया। अब खाली घर बैठे हैं। दिल्ली के पंछी बाजार में पिछले चार साल से कबाड़ का काम कर रहे चंद्रपाल के पास मनरेगा का जॉब कार्ड था, जो बाद में निरस्त कर दिया गया। लंबी तालाबंदी में कबाड़ का कामधंधा ठप हो गया, तो 22 दिन पहले लौटकर अपने गांव नगला पोला आ गए। सरकार की घोषणा और अधिकारियों का दबाव था कि हर प्रवासी मजदूर को काम दिया जाए। मनरेगा ही गांव देहात के मजदूरों के लिए बचा था। उसमें प्रधान ने चंद्रपाल को भी काम दे दिया। तीन दिन चंद्रपाल ने काम किया और चौथे दिन काम बंद हो गया। चंद्रपाल का पुराना जॉब कार्ड निरस्त हो गया और नया बना नहीं। इस बीच बैंक का खाता भी गड़बड़ हो गया। काम प्रदाता की तरफ से इसके संकेत मिल गए थे कि मनरेगा में नकद धनराशि मिलेगी नहीं और खाता गड़बड़ होने के कारण मजूरी बैंक में ट्रांसफर नहीं हो पाएगी।
जिस आफत में चंद्रपाल, अपनी पत्नी और पांच बच्चों के साथ दिल्ली छोड़कर अपने गांव आए थे, वही मुसीबत उसके सामने यहां भी खड़ी हो गई। शहर में कोई कामकाज मिल नहीं रहा और मनरेगा से आस टूट गई, तो चंद्रपाल के परिवार पर दो वक्त की रोटी जुटाने का जो संकट दिल्ली में था, वही गांव में दिख रहा है। चंद्रपाल का कहना है कि करीब चार साल पहले मनरेगा में काम करने के लिए जॉब कार्ड बनवाया था। उसके पैसे आज तक नहीं मिले। जॉब कार्ड के साथ दी गई पासबुक में जो खाता संख्या दी गई थी, वह फीडिग में गड़बड़ हो गई। उसके बाद वह दिल्ली चले गए। वहीं अपने परिवार के साथ रहने लगे। दिल्ली में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन किया गया तो धंधा भी खत्म हो गया। मजबूरी में गांव लौटना पड़ा और यहां भी अब कोई काम नहीं मिल पा रहा है। इसलिए जो बचत थी, उससे ही अभी पेट भर रहे हैं। आगे क्या होगा, वह भी कुछ समझ नहीं पा रहे हैं। रावल गांव की प्रधान के पति विजय सिंह ने बताया कि गांव में मनरेगा में मजदूरों को काम दिया जा रहा है। अगर किसी भी मजदूर के बैंक खाते में कोई गड़बड़ी है तो उसको ठीक करा दिया जाएगा। मजदूर आएं और काम करें। उन्होंने किसी को काम देने से इंकार नहीं किया है। कोरोना काल में लॉक हो गईं श्रमिकों के लाभ की योजनाएं
संवाद सहयोगी, मथुरा : हाड़तोड़ मेहनत कर परिवार का पेट पालने वाले श्रमिकों के लिए संचालित योजनाएं भी कोरोना काल में लॉक हो गईं। न तो श्रमिक योजनाओं को आवेदन कर पा रहे हैं और न ही उन्हें लाभ मिल पा रहा है। वर्ष 2011 में शुरू हुईं इन योजनाओं के लाभ के लिए आवेदन करना पड़ता है। कोरोना से हुए लॉकडाउन में सरकार ने सभी योजनाओं का एक विकल्प आपदा राहत सहायता योजना दे दिया। अन्य योजनाओं को अस्थाई रूप से बंद कर केवल आपदा राहत सहायता योजना के तहत श्रमिकों को एक हजार रुपये भरण-पोषण के लिए उनके खाते में श्रम विभाग के माध्यम से भेजे जा रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान अन्य जिलों व राज्यों से आने वाले प्रवासी मजदूरों का भी श्रम विभाग डाटा एकत्र कर रहा है, लेकिन अभी तक इनके लिए कोई रोजगार की व्यवस्था नहीं हो पाई है। योजनाओं से लाभान्वित श्रमिकों पर एक नजर
योजना का नाम, वर्ष 2019-20 में लाभान्वित, कुल लाभान्वित
शिशु हितलाभ, 274, 2322
मातृत्व हितलाभ, 117, 1835
बालिका मदद , 22, 829
निर्माण कामगार पुत्री विवाह अनुदान, 264, 385
मेधावी छात्र पुरस्कार, 83, 391
मृत्यु एवं विकलांगता, 21, 165
अंत्येष्टि सहायता, 20, 112
सौर ऊर्जा सहायता, -, 488
आवास सहायता, -, 296
संत रविदास शिक्षा सहायता, 34, 616
चिकित्सा सहायता, 5149, 26544
आपदा राहत सहायता, 18678, 18816
---------------- इंफो
73 हजार जिले में कुल पंजीकृत मजदूर
-31 हजार जिले में कुल सक्रिय पंजीकृत मजदूर
- 24500 मिला आपदा राहत सहायता का लाभ
-1277 कुल प्रवासी मजदूरों का डाटा लिया
- 212 पात्र प्रवासी मजदूर