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जब शालिग्राम शिला से प्रकटे ठा. राधारमणलाल

प्राकट्योत्सव आज पंचगव्य से होगा महाभिषेक प्राकट्य के 478 साल बाद भक्तों को नहीं होंगे महाभिषेक के दर्शन

By JagranEdited By: Published: Thu, 07 May 2020 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 07 May 2020 06:08 AM (IST)
जब शालिग्राम शिला से प्रकटे ठा. राधारमणलाल

संवाद सहयोगी, मथुरा : साधकों की भूमि वृंदावन में संतों ने अपनी साधना के बल पर न केवल प्राणीमात्र को प्रभावित किया, बल्कि आराध्य भी साधकों के वशीभूत हो भक्तों का कल्याण करने के लिए देव रूप में प्रकट हुए हैं। वृंदावन साधकों की वह पवित्र साधना भूमि है, जहां स्वामी हरिदास के लड़ैते ठा. बांकेबिहारीलाल ही नहीं आचार्य गोपाल भट्ट की साधना से प्रसन्न होकर ठा. राधारमणलाल जू ने भी शालिग्राम शिला से देव स्वरूप लिया। आज गोपाल भट्ट द्वारा सेवित राधारमणलाल जू की सेवा पूजा उनके वंशज ही विधिविधान पूर्वक राधारमण मदिर में कर रहे हैं। सप्तदेवालयों में प्रमुख राधारमण मंदिर में गुरुवार को ठाकुरजी का प्राकट्योत्सव उल्लास पूर्वक मनाया जाएगा, लेकिन इस बार ये लॉकडाउन के चलते आम श्रद्धालुओं को दर्शन नहीं हो सकेंगे।

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478 साल पहले चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी आचार्य गोपाल भट्ट गोस्वामी के प्रेम के वशीभूत होकर ठा. राधारमणलाल जू शालिग्राम शिला से प्रकट हुए। वैशाख शुक्ल पूर्णिमा की भोर में शालिग्राम शिला से प्रकटे राधारमणदेव जू का आचार्य गोपाल भट्ट गोस्वामी पूर्व में शालिग्राम शिला का विधिविधान पूर्वक पूजन करते रहे। मंदिर सेवायत और गोपाल भट्ट गोस्वामी के वंशज वैष्णवाचार्य अभिषेक गोस्वामी बताते हैं गोपाल भट्ट गोस्वामी में अपने आराध्य शालिग्राम शिला में ही गोविददेव जी का मुख, गोपीनाथजी का वक्षस्थल और मदनमोहनजी का चरणारविद के दर्शन की अत्यंत उत्कंठा थी। वैशाख शुक्ल पूर्णिमा के दिन जब भक्त प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान नृसिंहदेव प्रकट हुए तो गोपाल भट्ट गोस्वामी ने अपने आराध्य से कहा, 'क्या मेरा भी ऐसा सौभाग्य होगा, इस शालिग्राम शिला से प्राकट्यरूप से दर्शन कर सकूंगा?' भक्त की वेदना प्रभु से छिपी नहीं रही और वैशाख शुक्ल पूर्णिमा की भोर में ठा. राधारमणदेव शालिग्राम शिला से प्रकट हुए। बॉक्स

मंदिर की रसोई में तैयार

प्रसाद ही होता है अर्पित

राधारमण मंदिर में 478 साल पुरानी परंपरा का निर्वहन आज भी हो रहा है। यहां बाहर का प्रसाद ठाकुरजी को अर्पित नहीं किया जाता। मंदिर की रसोई में सेवायत खुद ही ठाकुरजी का प्रसाद तैयार कर अर्पित करते हैं। बाहर के किसी व्यक्ति को रसोई में प्रवेश भी वर्जित है। माचिस का नहीं होता उपयोग

मंदिर की परंपरा के अनुसार किसी भी कार्य में माचिस का प्रयोग नहीं होता। मंदिर स्थापना के साथ ही पिछले 478 साल से प्रज्वलित अग्नि की मदद से ही रसोई समेत अनेक कार्यों का संपादन सेवायतों द्वारा किया जाता है। आज होगा महाभिषेक

ठा. राधारमण देव का प्राकट्योत्सव गुरुवार को धार्मिक अनुष्ठानों के साथ मनाया जाएगा। प्रात: काल वैदिक ऋचाओं के मध्य श्रीविग्रह का 2100 किलो दूध, दही, घी, शहद, शक्कर, पंचगव्य, सर्वाषौधि, गंधाष्टक, बीजाष्टक समेत 54 जड़ी-बूटियों से महाभिषेक होगा। लॉकडाउन की बंदिश के चलते भक्तों को इसके दर्शन सुलभ नहीं हो सकेंगे।


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