बाबा ने सौंपे राम, वंशज संभाल रहे परंपरा
रावण दहन से पूर्व राम और लक्ष्मण के स्वरूप मांगने जाते हैं महाविद्या देवी से शक्ति
उमेश भारद्वाज, मथुरा: श्रीराम लीला सभा के तत्वाधान में रामलीला का मंचन शहर के विभिन्न हिस्सों में लीला प्रसंग के हिसाब से होता है। रावण दहन की लीला रामलीला मैदान में होती है। रावण से युद्ध करने से पहले श्रीराम और लक्ष्मण महाविद्या देवी की पूजा कर उनसे शक्ति मांगते हैं। इस दौरान दोनों स्वरूपों को कंधों पर बैठाकर मंदिर ले जाने ंव लाने की परंपरा है।
करीब 70 वर्ष पूर्व महाविद्या कालोनी निवासी स्व. श्री हरिओम अग्रवाल ने संस्था के तत्कालीन प्रधानमंत्री बांकेलाल सर्राफ से कहा कि राम और लक्ष्मण के स्वरूप दर्जनों सीढि़यां चढ़कर मंदिर जाते और आते हैं। उनको सीढि़यां न चढ़नी पड़ें ऐसी व्यवस्था हो। बांकेलाल ने इसका जिम्मा हरिओम अग्रवाल को ही सौंप दिया। करीब सात फीट लंबे और मजबूत शरीर के हरिओम अग्रवाल ने यह बीड़ा उठाया। वह प्रतिवर्ष राम और लक्ष्मण के स्वरूप को अपने दोनों कंधों पर बैठाकर मंदिर की सीढि़यां चढ़ते थे। पिछले वर्ष से जुड़ी तीसरी पीढ़ी
हरिओम अग्रवाल के बाद उनके पुत्रों गोपाल कृष्ण अग्रवाल, राजकुमार अग्रवाल और पवन अग्रवाल ने यह परंपरा निभाई। मेडिकल स्टोर संचालक पवन प्रभू श्रीराम और उनके बड़े भ्राता गोपाल कृष्ण छोटे भाई लक्ष्मन को कंधे पर बैठाकर मंदिर तक ले जाते हैं। पिछले वर्ष की लीला में गोपाल अग्रवाल के पुत्र रवि, राहुल, रोहित और पवन अग्रवाल के पुत्र भुवन और प्रणव इस परंपरा से जुड़ गए हैं। - पिताजी के संकल्प को हम तीनों भाई पूरा कर रहे हैं। तीसरी पीढ़ी का उत्साह देखने लायक है। रामजी को कंधे पर उठाकर कब सीढि़यां चढ़ जाते हैं पता ही नहीं चलता।
पवन अग्रवाल, व्यापारी