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हालात ने थामे कदम, कान्हा में रम गया मन

साधना भूमि तीर्थयात्रा पर आए श्रद्धालु लॉकडाउन में फंसे तो आराध्य की भक्ति में तल्लीन हो गए जय श्री राधेश्याम -बोले जब प्रभु चाहेंगे तब अपने घर जाएंगे अब तो सब राधे-राधे है राधेश्याम के साधकों का मन ब्रज में ऐसा रमा कि साधनहीनता भूल गए

By JagranEdited By: Published: Thu, 21 May 2020 12:55 AM (IST)Updated: Thu, 21 May 2020 06:03 AM (IST)
हालात ने थामे कदम, कान्हा में रम गया मन
हालात ने थामे कदम, कान्हा में रम गया मन

विपिन पाराशर, मथुरा : वृंदावन में 'मुक्ति कहे गोपाल से मेरी मुक्ति बताय, ब्रज रज उड़ मस्तक लगे, मुक्ति मुक्त हो जाय। ये साधकों की भूमि वृंदावन है। यहां जो भी आया आस्था और भक्ति में रंग गया। जिस पावन भूमि पर भगवान श्रीकृष्ण के चरण पड़े, उस पवित्र भूमि को भक्तों ने अपनी साधना के लिए चुना है। जो एक बार आया, यहीं का होकर रह गया। कुछ भक्त ऐसे भी हैं, जो आए तो आराध्य के दर्शन को थे, लेकिन लॉकडाउन में फंस गए। ये उनकी अपने आराध्य के प्रति श्रद्धा ही है कि यहां भी कोरोना से जंग में वह राधे-राधे जप रहे हैं। हालात को भगवान की इच्छा माना और राधा-कृष्ण की साधना में तल्लीन हो गए। आस्था ऐसी लॉकडाउन में इतने दिन कान्हा की नगरी में रहने को अपना सौभाग्य मान रहे हैं। किशोरपुरा के गौतम सरदार गेस्ट हाउस में पश्चिम बंगाल के 49 श्रद्धालुओं का दल 19 मार्च को वृंदावन तीर्थयात्रा पर आया। लॉकडाउन लागू होने के बाद यहीं फंसकर रह गया। एक गेस्टहाउस में दिन गुजार रहे ये श्रद्धालु इस बंदिश को भी ईश्वर की कृपा मान रहे हैं। कई बार घर जाने की कोशिश की, लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो भगवान के भजन और साधना में ही समय गुजारने लगे। करीब डेढ़ हजार लोग ऐसे हैं जो अलग-अलग राज्यों से हैं और वृंदावन में अलग-अलग स्थानों पर फंसे हैं। पश्चिम बंगाल के अमिय सूर्य चटर्जी 19 मार्च को तीर्थयात्रा पर आए थे। लेकिन लॉकडाउन ने कदम रोक दिया। कहते हैं कि जाना तो चाहते हैं, लेकिन जब प्रभु चाहेंगे तभी जाएंगे। कोलकाता के देवाशीष भट्टाचार्य कहते हैं कि जब आराध्य ने यहां रखा है, तो उनका भजन करके ही समय काट रहे हैं। हां, सुबह-शाम उनकी साधना और भजन से मन प्रफुल्लित रहता है। ये प्रभु की इच्छा है कि वह हमें अपने पास रोके हैं। कोलकाता की ही आशा लता डे कहती हैं कि ये मेरा सौभाग्य है कि वृंदावन की भूमि पर इतने दिन रहने को मिला। बस आर्थिक हालात अधिक दिन रहने की इजाजत नहीं देते। कोलकाता के ही अरूपदास तो सब ईश्वर पर छोड़ आराधना में जुट गए हैं। कहते हैं कि वृंदावन की पावन भूमि पर रहने का आनंद ही अलग है। जब ईश्वर चाहेंगे, तब हम अपने घर पहुंच जाएंगे।

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