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मथुरा साधना के संकेतः मां से मधुरता और चाचा से नजदीकी बढ़ाते दिखे अखिलेश

सपा मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का मां साधना गुप्ता के साथ यहां आना सुगबुगाहट छोड़ गया है। चर्चाओं के दौर चल पड़े हैं।

By Nawal MishraEdited By: Published: Sat, 09 Jun 2018 11:12 PM (IST)Updated: Mon, 11 Jun 2018 11:12 AM (IST)
मथुरा साधना के संकेतः मां से मधुरता और चाचा से नजदीकी बढ़ाते दिखे अखिलेश
मथुरा साधना के संकेतः मां से मधुरता और चाचा से नजदीकी बढ़ाते दिखे अखिलेश

मथुरा (योगेश जादौन)। सपा मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का मां साधना गुप्ता के साथ यहां आना सुगबुगाहट छोड़ गया है। चर्चाओं के दौर चल पड़े हैं। संकेत में जिस तरह उन्होंने परिवार के साथ होने की बात कही, वह आने वाले दिनों के लिए कई मायने रखती है। शनिवार को परिवार के साथ बांके बिहारी मंदिर पहुंचे अखिलेश यादव के अन्य परिवारीजनों के साथ सौतेली मां साधना गुप्ता का साथ होना खास रहा। पारिवारिक खींचतान के बीच प्रदेश की सियासत में शिकस्त खाने के बाद यह शायद पहला मौका है जब अखिलेश पिता मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी के साथ सार्वजनिक तौर पर देखे गए हैं।

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कुशलक्षेम के लिए मां की मौजूदगी जरूरी

अखिलेश ने अभी इस पर कुछ कहा नहीं है लेकिन इसके दो कारण हो सकते हैं। वह या तो परिवार की ऐसी कुशलक्षेम के लिए बांकेबिहारी से प्रार्थना करने आए हैं, जिसमें मां की मौजूदगी जरूरी है। दूसरे शायद वह यह संदेश देना चाहते हैं कि उनके परिवार में अब हालात सामान्य हैं। जमाना भी देखे कि सौतेली मां से उनके संबंध मधुर हैं और पूरा परिवार एक साथ है। स्वयं अखिलेश ने इसकी एक तरह से पुष्टि करते हुए कहा कि वह तो चाहते हैं कि सभी लोग अपने परिवार के साथ ही बांके बिहारी के दर्शन करने को आएं। उनके परिवार में सब कुछ ठीक चल रहा है। किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं है। साफ है कि पूर्व मुख्यमंत्री का यह बयान एक सधे राजनीतिज्ञ का बयान है। साथ ही विरोधियों को एक छिपा संदेश भी है कि वह पहले से अधिक मजबूत हुए हैं। इस मजबूती के साथ वह 2019 के चुनाव पर नजर रखे हैं।

राजनीति में शिकस्त के सबक 

इससे कुछ महीने पहले आगरा में जुटे पूरे परिवार के बीच अखिलेश, चाचा शिवपाल से भी नजदीकी बढ़ाते दिखे थे। फीरोजाबाद में हाल में ही हुए एक पारिवारिक कार्यक्रम में भी प्रो. रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव खुशनुमा माहौल में बतियाते दिखे। साफ है कि राजनीति में शिकस्त ने उन्हें यह सबक तो दिया ही है कि परिवार से अलग होकर वह कुछ नहीं कर सकते। उनकी ताकत परिवार के एक साथ खड़े होने में ही है। शायद बांकेबिहारी की शरण से वह इसकी बेहतर शुरुआत करने वाले हैं। 


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