कालिया दहन लीला के दौरान सचमुच के नाग को नाथा कृष्ण स्वरूप ने, बड़ा ही रोचक है इस परंपरा का इतिहास
डेढ़ सौ साल पहले दतिया के राजा ने भेंट किया था स्वर्ण मुकुट। रास करते हुए अर्न्तधान हो गया था कृष्ण स्वरूप बालक।
मथुरा, किशन चौहान। भगवान श्रीकृष्ण की आल्ह्दिनी शक्ति राधारानी की प्रेम के प्रतीक तमाम प्राचीन रासलीलाओं को बूढ़ी लीला महोत्सव के चलते दिखाया जा रहा है। जिसमें यशोदा नंदन व बृषभान नंदनी के द्वारा किए गए द्वापरयुग में रासलीलाओं को आज भी उन्हीं स्थान पर रासाचार्यो के द्वारा किया जाता है। राधाष्टमी मेला से प्रारम्भ होने वाले बूढ़ी लीला महोत्सव का समापन कृष्ण के कामदेव पर विजय के प्रतीक रूप में किये जाने वाले महारास के साथ होता है।
ब्रज में रासलीलाओं की शुरूआत संत घमंड देवाचार्य जी द्वारा किया गया था। भगवान श्रीकृष्ण व राधारानी का सबसे प्रिये लीलाओं में से एक महारास लीला का मंचन आज भी राधाकृष्ण स्वरूपों द्वारा प्राचीन महारास लीलास्थलों पर किया जाता है। बुधवार को मढ़ोई में स्थित प्राचीन महारास चबूतरे पर राधाकृष्ण की प्राचीन महारास लीला का आयोजन किया जाएगा। ब्रज में संत घमंडदेवाचार्य जी ने रासलीलाओं की परम्परा को शुरु कर इसका प्रचार प्रसार किया था। आज से चार सौ बर्ष पहले स्वंय श्रीकृष्ण ने उन्हें रासलीला की परम्परा को शुरु कराने की प्रेरणा दी थी। यहां तक कि श्रीकृष्ण ने उनको एक दिव्य मुकुट भी प्रदान किया था। इस दिव्य मुकुट को करहला गांव के एक बालक को जब कृष्ण का स्वरूप बनाकर धारण कराया गया, तो दिव्य मुकुट को धारण करके रास कर रहे कृष्ण स्वरूप बालक आचनक अन्तर्ध्यान हो गया था। मान्यता है कि रासलीला के दौरान ठाकुरजी का अभिनय कर रहे स्वरुपों में स्वंय उनका आवेश और शक्ति प्रवाहित होती है। इसके कई उदाहरण सामने आते रहते है। आज से करीब डेढ़ सौ साल पहले मढ़ोई के गोवर्धन स्वामी अपनी रास मंडली को लेकर दतिया में रासलीला का आयोजन करने गये थे। दतिया के राजा ने कृष्ण स्वरुप बालक की परीक्षा लेने के लिये, कालिया दहन लीला के दौरान सचमुच के नाग को नाथने के लिए कहा था। जब कृष्ण स्वरूप उस बालक ने सचमुच के नाग को नाथ दिया, तो राजा इस दिव्य व चमत्कारी लीला को देखकर नतमस्तक हो गया और उनसे क्षमा याचना कर उनको सवा पांच किलो सोने का मुकुट भेंट किया। यह मुकुट गोवर्धन स्वामी के वंशधारियों के पास आज भी सुरक्षित है। पूर्णिमा के दिन होने वाले महारास लीला के अवसर पर कृष्ण स्वरुप को इसे धारण कराया जाता है। स्वामी गोवर्धन व उनके वंशजो ने लम्बे समय तक लीलाओं के माध्यम से रास परम्परा को आगे बढ़ाया है। उसी प्राचीन महारास लीला का आयोजन बुधवार को मढ़ोई में स्थित प्राचीन रास चबूतरे पर किया जाएगा। जिसमें कृष्ण स्वरुप बने बालक को प्राचीन स्वर्ण मुकुट पहनाया जाएगा। राधा कृष्ण की इस अद्भुत महारास लीला व प्राचीन पांच किलो वजनी स्वर्ण मुकुट को देखने के लिए श्रद्धालुआें का जनसैलाब उमड़ता है।
रासाचार्यो की जन्मस्थली है करहला मडोई
रासलीलानुकरण का अविष्कार व ब्रज के प्राकट्यकर्ता श्रील नारायण भट्ट ने किया तो ब्रज में पहली रासलीला करने वाले घंमडदेवचार्य रहे थे। तब से लेकर आज तक ब्रज का यह क्षेत्र देश व दुनिया में नाम कमाने वाले रासाचार्यो को पैदा करता रहा है। मढ़ोई के स्वामी राधाकिशन व गोवर्धन स्वामी ने रास लीलाओं का प्रचार प्रसार देश भर में किया था।