Move to Jagran APP

बैकुंठ द्वार से गुजरे रंगनाथ तो भक्त हुए निहाल

ठाकुरजी के पीछे भक्तों ने बैकुंठ द्वार से गुजरकर कमाया पुण्य

By JagranEdited By: Published: Tue, 18 Dec 2018 11:45 PM (IST)Updated: Tue, 18 Dec 2018 11:45 PM (IST)
बैकुंठ द्वार से गुजरे रंगनाथ तो भक्त हुए निहाल

वृंदावन, जासं: दक्षिण भारतीय परंपरा के रंगजी मंदिर में मंगलवार को बैकुंठ उत्सव उल्लास पूर्वक मनाया। बैकुंठ एकादशी पर भोर में ठाकुरजी सोने की पालकी में विराजकर बैकुंठ द्वार से गुजरे तो मंदिर परिसर भक्तों के जयकारे से गूंज उठा।

loksabha election banner

रामानुज संप्रदाय में साढ़े चार हजार साल से मनाए जा रहे बैकुंठ उत्सव की परंपरा निराली है। बैकुंठ एकादशी के दिन ठा. रंगनाथ बैकुंठ द्वार से आल्वार संतों (तमिलनाडु के आल्वार तिरु नगरी में इमली के वृक्ष के नीचे भगवान की साधना में रत रहने वाले संत आल्वार शठकोप सूरी महाराज) को दर्शन देने के लिए निकलते हैं। मान्यता है कि जब भगवान बैकुंठ द्वार से गुजरते हैं उस वक्त तो जो भी भक्त भगवान के पीछे उक्त द्वार से गुजरता है, उसे बैकुंठ की प्राप्ति होती है। इसी कामना के साथ सैकड़ों भक्त ठिठुरती ठंड में घंटों भगवान के बैकुंठद्वार से गुजरने का इंतजार करने रात में ही मंदिर पहुंच गए।

ठा. रंगनाथ मंदिर में मंगलवार की भोर में वैदिक पूजन और वेदमंत्रों की अनुगूंज के साथ ठाकुरजी की आरती उतारी गई। सोने की पालकी में ठाकुरजी को विराजमान करवाया और दक्षिण भारतीय परंपरा के वाद्ययंत्रों की धुन और वेदमंत्रों के सस्वर पाठ के साथ ठाकुरजी की पालकी बैकुंठ द्वार से निकली। ठाकुरजी के दर्शन का इंतजार कर रहे भक्तों में उल्लास छा गया और जयकारे गूंजने लगे। बैकुंठ द्वार से निकलकर ठाकुरजी संतों को दर्शन देने के बाद पुन: मंदिर पहुंचे। जहां सेवायतों ने उनकी आरती उतार प्रसाद अर्पित किया। यह है उत्सव की मान्यता

मथुरा: रामानुज संप्रदायाचार्य नरेशनारायण ने बताया कि करीब साढ़े चार हजार साल पहले जब बैकुंठ जाने का समय हुआ तो संत ने बैकुंठ गमन से पहले भगवान से उनके द्वारा रची गई श्रीराम एवं श्रीकृष्ण लीला का वर्णन सुनने की अपील की। संत की आराधना से प्रसन्न भगवान रंगनाथ ने उन्हें बैकुंठ जाने के लिए दस दिन का समय बढ़ाया और उनके समक्ष अपने दोनों रूपों की लीलाओं का वर्णन किया। इसके बाद ही संत आल्वार शठकोप सूरी बैकुंठ गए। इसी समय से रामानुज संप्रदाय में बैकुंठ उत्सव मनाया जाता है। उत्सव में वैष्णव आल्वार संत चार हजार प्रबंध पाठ का दिव्य गायन भगवान रंगनाथ को सुनाते हैं। इन्हीं संतों को बैकुंठ एकादशी के दिन दर्शन देने के लिए भगवान रंगनाथ बैकुंठ द्वार से बाहर निकलते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.