बृषभानु भवन में मचली ढांढि़न ने मांगा नेग
मयूर बन राधा को किया प्रसन्न
संसू, बरसाना: श्रीधाम बरसाना में राधाष्टमी के दूसरे दिन भी वातावरण राधामय नजर आया। मोरकुटी पर मयूर लीला के साथ बूढ़ी लीला का शुभारंभ हुआ तो शाम को लाडि़ली जी मंदिर में ढांढ़ी-ढांढि़न ने नृत्य कर जन्म की बधाई दी।
मंगलवार को प्राचीन मोरकुटी स्थल पर एक बार फिर मयूर लीला जीवंत हो उठी। मयूर लीला को देख श्रद्धालु भी आनन्द से भाव विभोर हो उठे। बूढ़ी लीला महोत्सव में प्राचीन लीला स्थलों पर चिकसोली के बृजन स्वामी द्वारा लीलाओं का मंचन किया जाता है। मान्यता है कि राधारानी मोर देखने के लिए उक्त स्थल पर अपनी सखियों के साथ आती है। लेकिन एक भी मोर न दिखने पर वृषभानु दुलारी व्याकुल हो जाती है। राधा की व्याकुलता को देख खुद भगवान श्रीकृष्ण मोर बनकर नाचते हैं।
शाम को मंदिर में ढांढि़न मचल रही, मोह भानु घर ले चल रे ढांढि़निया के गायन के साथ बधाई दी। परंपरा के अनुसर एक ढांढ़ी व ढांढि़न को जब पता चलता है, की बाबा बृषभान के यहां लाली हुई है, तो वह बधाई लेने के लिए उनके भवन में पहुंचती हैं और खुशी में नाचती और गाती है। अनुराग सखी ने सोलह श्रृंगार कर ढांढि़न के रूप में लाड़िली जी के महल में कार्यक्रम की प्रस्तुति दी। पन्द्रह सालों से राधाकृष्ण के ब्रज में मेरा आना जाना है। मयूर लीला के दर्शन का सौभाग्य, एक अनूठा अनुभव रहा।
-मोहनदास, श्रद्धालु, पंजाब। बरसाना में आज भी राधाकृष्ण की दिव्य लीलाओं की अनुभूति होती है। मयूर लीला को देख आनंद की अनुभूति हुई। -पूजा, बरसाना। पांच हजार बर्ष पहले भगवान श्रीकृष्ण ने मयूर लीला की थी। आज भी इस स्थल पर कान्हा के लीलाओं की अनुभूति होती है। -जयदेव दास महंत, मोरकुटी । बूढ़ी लीला महोत्सव का आयोजन करीब सौ सालों से करते आ रहे है। इन लीलाओं को उन्ही प्राचीन स्थलों पर होती है जहां भगवान श्रीकृष्ण ने लीलाएं की थी।
-नन्दकिशोर स्वामी, चिकसोली ।