जातीय गोलबंदी से गोत्र की और बढ़ रही राजनीति
राजस्थान, दिल्ली, यूपी और हरियाणा के खूटैला और तोमर जाटों ने तलाशा अपना नायक
मनोज चौधरी, मथुरा: जातीय राजनीति से भी आगे बढ़कर के अब गोत्रवाद की गोलबंदी का नया इतिहास वर्तमान राजनीति में लिखा जाने लगा है। मंगलवार को जाट जाति के खूटैला और तोमर गोत्र ने नगला आशा में बुलाए खूटैला तोमर एकता सम्मेलन से इसका शंखनाद किया गया। राजस्थान के भरतपुर जिले के गांव गुनसारा के पुष्कर ¨सह पाखरिया को अपना नायक भी घोषित कर दिया गया।
अक्टूबर, 1764 को शरद पूर्णिमा के दिन पाखरिया ने दिल्ली किले के गेट की कीलों पर अपना सीना अड़ा कर हाथी के टक्कर मरवाकर गेट को तुड़वाया था। तभी भरतपुर के राजा जवाहर ¨सह की सेना ने किले के अंदर प्रवेश कर मुगलों को हराया था। दोनों गोत्रों के योद्धाओं को इतिहास में स्थान न दिए जाने पर मानव विकास संसाधन, जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा सफाई मंत्रालय के राज्यमंत्री सत्यपाल तोमर ने इतिहासकारों को दोषी ठहराया। कहा कि ढाई सौ साल बाद भी वीर पाखरिया के परिजनों का कोई अता-पता नहीं लगा है। राज्यमंत्री ने कहा कि आज वह भी खूटैला तोमर हो गए। दरअसल, उनका गोत्र तोमर है। बागपत बढ़ौत के इकबाल कवि ने कस्बा सौंख के समीप नगला आशा में हुए खूटैला तोमर एकता मंच सम्मेलन को दोनों गोत्रों की पहचान की ऐतिहासिक तारीख को बताया। खादी बोर्ड के चेयरमैन डॉ. नेपाल ¨सह ने कहा कि यूपी, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली में दोनों गोत्रों की कोई विरासत धरोहर की तलाश कर उसे समृद्ध किया जाएगा। हरियाणा से आए राजेंद्र ¨सह ने कहा कि 28 अक्टूबर को रोहतक में दोनों गोत्र के लोगों को दुनिया भर आ रहे हैं। नगला आशा के देव कुंतल, मास्टर हरी ¨सह, भरत ¨सह और ओमप्रकाश ने सोशल मीडिया के माध्यम अपने दोनों गोत्रों के समाज को जोड़ा था।