पड़ाव स्थल चीरघाट को छोड़ गई यमुना
संवाद सूत्र, तरौली: ब्रज चौरासी कोस यात्रा का 23वां पड़ाव चीर घाट है। यह स्थान श्रीकृष्ण की बाल लीला
संवाद सूत्र, तरौली: ब्रज चौरासी कोस यात्रा का 23वां पड़ाव चीर घाट है। यह स्थान श्रीकृष्ण की बाल लीला से जुड़ा है, लेकिन यहां की वर्तमान हालात बेहद खराब है। यमुना घाट से काफी दूर जा चुकी है। यहां ग्राम समाज की करीब दस एकड़ भूमि बताई जाती है। इस पर भी अवैध कब्जे हैं। सुविधाएं न होने के कारण यात्री खुले में रुकना पसंद ही नहीं करते। उन्हें खुले में शौच को मजबूर होना पड़ता है। मंदिर पर ही कुछ देर आराम कर यात्री आगे बढ़ जाते हैं।
अपने पिछले पड़ाव शेरगढ़ से चीरघाट की दूरी करीब 10 किमी है। ऐंचा दाऊजी के दर्शन कर श्रद्धालु कच्चे रास्ते से होते हुए विहार वन पहुंचते हैं। यहां से श्रद्धालु कालिन्दी के किनारे दो किमी की दूरी तय करने के बाद चौमुहां के गांव स्यारहा में बने चीर घाट पहुंचते हैं। यात्री अव्यवस्थाओं के बीच ग्रामीणों की सेवा पर ही निर्भर दिखते है। कुछ यात्री चीरघाट मंदिर को अपना ठिकाना बनाते हैं तो कुछ खुले खेतों में रात बिताने को मजबूर होते हैं। महिलाएं भोजन बनाने के लिए महंत की कुटिया का प्रयोग करती हैं। किसी श्रद्धालु की तबियत खराब होने पर करीब 15 किमी दूर छटीकरा लेकर भागना पड़ता है। मंदिर के समीप ही श्रीजीबाबा ट्रस्ट की ओर से करीब 20 फीट के एक हॉल का भी निर्माण कराया गया है।
गोपियों के वस्त्र लेकर कदम्ब के पेड़ पर चढ़ गए थे श्रीकृष्ण:
द्वापर युग में महिलाएं नदी, तालाब, सरोवर में निर्वस्त्र होकर स्नान करती थीं जो कि अमर्यादित था। सम्पूर्ण स्त्री जाति को इसका बोध कराने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने लीला रची। उन्होंने इसी स्थान पर यमुना में गोपियों को स्नान करते देखा तो वे उन गोपियों के वस्त्र (चीर) लेकर निकट ही कदम्ब के पेड़ पर चढ़ गए। गोपियों की ओर से काफी प्रार्थना करने पर उन्होंने उनके वस्त्र वापस किए। साथ ही उन्हें वादा लिया कि वे आगे से निर्वस्त्र नदी या तालाब में स्नान नहीं करेंगी। तभी से यह स्थान चीर घाट के नाम से जाना जाता है। श्रद्धालु यहां कात्यायनी व पंचमुखी हनुमान के भी दर्शन करने आते हैं। वर्जन---
न तो यहां यात्रियों के लिए ठहरने की सुविधा है। न स्नान करने व शौच जाने की। करीब 10 वर्ष पूर्व श्रीजी बाबा ट्रस्ट की ओर से एक हॉल बनवाया गया था। इसमें यात्री रुकते है। इसमें भी आज तक पंखे नहीं लग सके हैं।
लाखन ¨सह, ग्रामीण पड़ाव स्थल पर शासन की ओर से कोई भी व्यवस्था नहीं की गई है। गांव समाज की जमीन को कब्जा मुक्त कराकर इसे अत्यन्त ही रमणीक स्थल बनाया जा सकता है, जिससे यहां की संस्कृति का प्रचार-प्रसार हो सके।
घूरे लाल, ग्रामीण पड़ाव स्थल पर रसोईघर, शौचालय व स्नान घर बनना चाहिए। महिलाओं को इनके अभाव में परेशानी उठानी पड़ती है। साथ ही सूखे पड़े चीर घाट पर पानी भरने की व्यवस्था प्रशासन द्वारा होनी चाहिए।
बाबा बालक दास, महंत ग्राम समाज की 10 एकड़ जमीन में से चार एकड़ पर लोगों ने अवैध कब्जा किया हुआ है। चार एकड़ में ग्राम पंचायत की ओर से पट्टे आवंटित कर दिए गए है। शेष खेल मैदान है। यहीं मजबूरी में यात्रियों को रुकना पड़ता है।
प्रकाश चन्द, प्रधान प्रतिनिधि