ब्रज की गलियों में दीनदयाल की यादों का वास, बाल सखा की जुबानी उनके किस्से
अंत्योदय का दर्शन देने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय की यादें आज भी ब्रज में वास करती हैं। उनके साथ बिताए दिन और उनकी कही बातें, यहां दिलों में जीवंत हैं।
आगरा (जेएनएन)। अंत्योदय का दर्शन देने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय की यादें आज भी ब्रज में वास करती हैं। उनके साथ बिताए दिन और उनकी कही बातें, यहां दिलों में जीवंत हैं। सहज स्वभाव के पंडित दीनदयाल हमेशा दूसरों का भला करने का विचार ही दिमाग में रखते थे। पं. दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर मथुरा के फरह स्थित जन्मस्थली दीनदयाल धाम के वाशिंदों में उनकी यादें हिलोरे ले रही हैं। गांव के बुजुर्ग बच्चों को उनके किस्से सुनाया करते हैं।
जगदीश प्रसाद पाठक ने बताया कि पंडितजी बाल्यकाल में अपनी ननिहाल राजस्थान चले गए। उनके बाल सखा यहीं रह गए। उसके बाद वह देश हित में काम करने लगे। जब यह बात गांव के लोगों को मालूम हुई तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। फरह स्थित सेठ प्रेमसुख दास भगत इंटर कॉलेज में एक सभा करने आने की सूचना पर गांव वाले बड़ी संख्या में पहुंच गए। उनसे गांव चलने के आग्रह पर उन्होंने कहा कि कि सभी लोग मेरे साथ हैं। पूरा देश मेरा गांव है। रमाशंकर पचौरी ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय शुरू से ही पढऩे में तेज थे। जब हम छोटे थे, तब खेलने के दौरान झगड़ा होता था तो पंडित जी सभी को अलग कर कहते थे कि जो खेल में हार रहा है, उसे जीतने की शिक्षा दो।
78 वर्षीय सेवानिवृत शिक्षक चेतन प्रकाश नौहवार ने संस्मरण बताया कि मेरे पिता नत्थाराम बताते थे कि उन्होंने ही बालक दीनू उपाध्याय की पट्टी पुजाई की थी। इसके एवज में जमींदार ने मेरे पिता को गांव जौताना में छह बीघा खेत का पट्टा दिया था। गांव की निजी बैठक (अंथाई) उस जमाने की पाठशाला थी।
गांव मंडी गुड़ के पूर्व प्रधान 75 वर्षीय सुरेंद्र कुमार शुक्ला ने बताया कि पं. दीनदयाल मेरे पिता किशन स्वरूप शुक्ला के सहपाठी थे। विधायक चौ. उदयभान सिंह ने कहा कि अंत्योदय के मार्गदर्शक पंडित जी की स्मृतियों को संजोने के इरादे से ही गांव मंडी गुड़ को उन्होंने गोद लिया है।
आगरा के फतेहपुरसीकरी ब्लॉक क्षेत्र के गांव मंडी गुड़ में पं. दीनदयाल उपाध्याय के बचपन के तीन वर्ष बीते। पं. दीनदयाल के पिता भगवती प्रसाद रेलवे में थे और अधिकांशत: बाहर रहते थे। इसी कारण बालक दीनदयाल माता रामप्यारी के साथ अपने रेलकर्मी नाना चुन्नीलाल शुक्ला के साथ धनकिया रेलवे स्टेशन पर रहते थे। उसी दौरान पिता की मौत का समाचार मिला। इससे मां रामप्यारी को गहरा आघात लगा, कुछ महीनों के अंतराल में दो मामा की भी असमय मौत हो गई। साथ ही क्षय रोग से आठ अगस्त 1924 को मां का भी देहांत हो गया। इन विषम स्थितियों में नाना चुन्नी लाल शुक्ला नौकरी छोड़कर करीब आठ वर्षीय बालक दीनदयाल को लेकर अपने गांव मंडी गुड़ लौट आए। यहीं उनका लालन पालन हुआ।