बाजरे के दलिया संग नहीं पक रही बेजर की रोटियां
बाजरे का दलिया लोगों के कम पसंद आ रहा है, लेकिन भुंट्टे 10 रुपये का बिक रहा ह ै।
जागरण संवाददाता, मथुरा: सौंख-गोवर्धन मार्ग किनारे एक दुकान पर बैठे 82 वर्षीय बाबूलाल कुशवाह की निरोगी काया है। छोटे-मोटे घरेलू काम में परिजनों का हाथ बांटकर दुकानदारी करते हैं। तीज-त्योहार पर इनकी रसोई में पूड़ी, खीर पकती थी। बेजर, गुरचनी की रोटी से ही जीवन के करीब पचास बंसत गुजारे थे।
गेहूं, जौ, ज्वार, चना की मिली रोटी, मक्का और बाजरा का दलिया, दूध, छाछ और गुड़ खाकर गांव सिकंदरपुर के 80 वर्षीय विपतीराम सात-आठ किमी पैदल चलकर आज भी सुरीर के बाजार आ रहे हैं। बेजर और गुरचनी का भोजन इनकी तंदुरस्ती का राज है। वह बताते हैं कि ताप-बुखार तो जानते भी नहीं थे। सौंठ और गरम दूध पीने से सर्दी जुकाम ठीक हो जाते थे। पुलिस लाइन के पास मक्का के भुट्टा बेचने वली बेबी कहती है कि ग्रामीण सस्ते में भूख मिटने को भुट्टा खरीदते हैं। सामने की दुकान पर दिनभर माता-पिता अपने बच्चों को फूले के पैकेट दिलाते नजर आते हैं। भुट्टा कितना फायदेमंद, वे नहीं जानते है। कई बड़ी कंपनियां इसी मोटे अनाज का दलिया, फूले और अन्य उत्पाद बनाकर मोटा मुनाफा कमा रही है। पैकेट में मक्का फूले और चना करीब पांच हजार रुपये किलो का पड़ रहा है।