यहां परिदे मेहमान नहीं, परिवार का सदस्य हैं जनाब
नारद कुंड में मेहमान परिदों की अठखेलियों ने मोह लिया मनहर ग्रामीण करता है यहां परिदों की रखवाली
विनोद अग्रवाल, कराहरी (मथुरा) : प्राचीन नारद कुंड और उसके पानी में अठखेलियां करते मेहमान परिदे। ये वह परिदे हैं जो अपना देश हजारों किमी दूर छोड़ कान्हा की नगरी में डेरा डाले हैं। यहां की आबोहवा ऐसी रास आई कि तीन माह तक डेरा यहीं जमता है। मेहमानों की अठखेलियों पर ग्रामीण भी ऐसे फिदा हैं कि अब वह मेहमानों को परिवार के सदस्य के रूप में देखते हैं। फिर मजाल क्या कि कोई शिकारी इधर नजर डाल जाए। परिदों की रखवाली तो खुद ग्रामीण करते हैं।
मांट तहसील मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर स्थित गांव डडीसरा के पास नारद कुंड है। कुंड का अपना पौराणिक इतिहास है। लेकिन धीरे-धीरे ये कुंड अब प्रवासी पक्षियों की नया डेरा बनता जा रहा है। दिसंबर के आखिरी सप्ताह से यहां विदेशी पक्षियों की आमद शुरू हुई, तो फिर संख्या बढ़ती ही रही। एक दर्जन से अधिक प्रजाति के पक्षियों को यहां की आबोहवा भा गई है। डडीसरा के प्रधान ठाकुर पूरनसिंह कहते हैं कि कुंड हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। यहां पक्षी आते हैं, तो उनकी रखवाली भी हमारा दायित्व है। यहां शिकारी नहीं आ पाते। कुंड के आसपास ग्रामीण खुद नजर रखते हैं। पूर्व में कई बार शिकारियों ने शिकार करने की कोशिश की, लेकिन ग्रामीणों ने पिटाई कर दी। स्थानीय निवासी चंद्रपाल कहते हैं कि अतिथि देवो भव:। हम ग्रामीणों के अंदर तो यही भावना है और इसी भावना से हम अपने मेहमानों की रक्षा करते हैं। वह कहत हैं कि नारद कुंड से थोड़ी दूर किनारे पर एक मंदिर है। इस मंदिर पर बैठकर नारद कुंड पर जाने वाले हर शख्स के बारे में जानकारी हो जाती है। जगन सिंह भी चंद्रपाल की बात में हां मिलाते हुए कहते हैं कि अब कोई शिकारी आसपास दिखता तक नहीं।
ये आए पक्षी
नारद कुंड में प्रवासी पक्षियों में साइबेरियन क्रेन, ग्रेटर फ्लेमिगो, रेड क्रस्टेड पोचर्ड, ग्रे लेग गूस, बार हेडेड गूज, टफ्टेड डक, पिन टेल, कामन टील, नीलसर, अबलक, कुर्चिया बतख, टिमटिमा, टिकड़ी, स्पून टेल, रूडी सेल्डक ने डेरा डाल दिया है। वर्तमान में इनकी संख्या करीब पांच हजार है।