भक्तों में मायूसी, चबूतरे पर ही माथा टेक लौटने को हुए मजूबर
सोमवार को सैकड़ों भक्त मंदिर में दर्शन की उम्मीद लेकर पहुंचे लेकिन बड़ी मायूसी के साथ वे चबूतरे पर ही माथा टेककर लौटने को मजबूर हुए
संवाद सहयोगी, वृंदावन: ठा. बांकेबिहारी मंदिर में सात महीने बाद दर्शन की उम्मीद भक्तों में जागी तो उल्लास छा गया था। लेकिन प्रबंधन और सेवायतों के बीच की खाई ने एकबार फिर भक्तों की मंदिर में एंट्री पर ब्रेक लगा दिया। बावजूद इसके सोमवार को सैकड़ों भक्त मंदिर में दर्शन की उम्मीद लेकर पहुंचे, लेकिन बड़ी मायूसी के साथ वे चबूतरे पर ही माथा टेककर लौटने को मजबूर हुए।
ठा. बांकेबिहारी मंदिर पर सोमवार की सुबह भक्त दर्शन की इच्छा लेकर पहुंचे। इन भक्तों में अधिकतर ग्रामीण अंचल के श्रद्धालु थे, इनकी शिकायत थी कि उन्हें समाचार पत्रों से जानकारी मिल पाई थी। इसलिए हम तो आराध्य के दर्शन की इच्छा लेकर ही आए थे। लेकिन जब मंदिर बंद मिले तो बड़ा आघात लगा है। लंबे समय से दर्शन नहीं हो पा रहे थे। शुरू के दो दिन इसलिए नहीं आए कि भीड़ अधिक थी। अब भी आराध्य के दर्शन संभव नहीं हो सके हैं। क्या कहते हैं श्रद्धालु
-हमें तो पता ही नहीं था कि मंदिर एकबार फिर बंद हो गए हैं। ऐसे दोबारा मंदिर बंद करना उचित नहीं। अब तो सबकुछ खुल गया है तो मंदिरों में प्रवेश पर प्रतिबंध नहीं होना चाहिए।
-प्रवेश शर्मा, अलीगढ़। -मंदिर खुलने की खबर सुनी तो खुशी हुई, बड़ी उम्मीद के साथ दर्शन करने आए। लेकिन दर्शन नहीं मिले। ऐसा नहीं हो चाहिए। बहुत दिक्कतों के साथ लंबा सफर तय करके कल शाम को निकले थे आज मंदिर तक पहुंचे तो मंदिर बंद है।
-राजकुमारी, छोटी चौपड़ के पास, जयपुर।
-मंदिर खुलने की तो खबर सुनी थी। बस सुबह दर्शन की इच्छा लेकर घर से निकल लिए। अखबार भी नहीं पढ़ा था, तो पता चलता। यहां आकर पता चला मंदिर बंद हो गए।
-रामबाबू यादव, आगरा।
-हर महीने दर्शन को आती थी। कोरोना ने तो बांकेबिहारी के दर्शन भी छीन लिए। अब पता नहीं क्यों दोबारा मंदिर बंद हो गए। बहुत दुख हो रहा है।
-ऊषा देवी, हरियाणा।