कुप्रथा को रोकने को कान्हा ने की थी यहां दान लीला, जानिए आज भी क्या है उस प्रसंग का महत्व
आज भी जीवंत हो उठती है दान लीला। बरसाना सांकरी गली में मौजूद है कृष्ण कालीन चिन्ह।
बरसाना, किशन चौहान। ग्वालिन दै जा हमारौ दान, यही दान के कारण छोड़ आयौ बैकुंठ सौ धाम। बरसाना चिकसोली के बीच स्थित सांकरी खोर में कान्हा ने दूध दही बेचने जा रही सखियों से अपना दान मांगा। आज भी यह लीला राधाष्टमी मेला के ठीक पांच दिन बाद उसी स्थान पर होती है जहा भगवान श्रीकृष्ण ने सखियों से दान मांगा था। भगवान श्रीकृष्ण ने यह लीला दूध दही बेचने की कुप्रथा को रोकने के लिए की थी।
ब्रज के हर कण कण में राधाकृष्ण के दिव्य लीलाओ का इतिहास मिलता है। वहीं बृषभानु दुलारी के निज धाम बरसाना में भी ऐसी तमाम जगह है। जहा आज भी राधाकृष्ण की तमाम लीलाएं द्वापरयुग का अहसास कराती है। ऐसी एक जगह है सांकरी खोर, जहा भगवान श्रीकृष्ण ने दूध दही बेचने की कुप्रथा को रोकने के लिए दान लीला की थी। कहा जाता है कि द्वापरयुग में बरसाना सहित आसपास के गांवों से कंस के लिए दूध दही मथुरा जाता है। जिसे रोकने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने यह लीला की थी। यह स्थान चिकसोली व बरसाना के मध्य में पड़ता है। उक्त प्राचीन स्थल पर राधा व कृष्ण नामक दो पर्वत आपस मे मिलते है। उक्त स्थल इतना सुकड़ा है कि एक ही व्यक्ति यहा से निकल सकता है। आज भी इसी पर्वत पर मटकी फोड़ने के चिन्ह व लाठी के चिन्ह दिखाई देते है। राधाष्टमी से ठीक पांच दिन बाद भाद्रसुदी की तेरस को इसी स्थान पर दान व मटकी फोड़ लीला का आयोजन किया जाता है।
सांकरी खोर की इसी गली में कान्हा ने चिकसोली की चित्रा सखी व उसकी सखियों से दान मांगा था। दान न देने पर कान्हा ने सभी की मटकी फोड़ दी। आज भी यह लीला भाद्र सुदी की तेरस को जीवंत हो उठती है।
हरीश श्रोत्रिया स्थानीय निवासी।
उक्त प्राचीन स्थल पर भगवान श्रीकृष्ण की दान लीला हुई थी। एक दान लीला तो दूसरी चोटी बन्धन लीला। दान लीला में भगवान ने गोपियों से दान मांगा तथा चोटी बन्धन लीला में भगवान की चोटी पेड़ से बांधकर सखियों ने उनकी पिटाई की थी।
रामशरण दास महंत
रासबिहारी मन्दिर सांकरी खोर।