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बांसुरी की धुन पर धवल चांदनी में साकार होगा महारास

51 सौ दीपों से झिलमिलाएगा परासौली का चंद्र सरोवररंग-बिरंगी रोशनी के बीच कलाकार प्रस्तुत करेंगे महारास

By JagranEdited By: Published: Thu, 29 Oct 2020 06:51 AM (IST)Updated: Thu, 29 Oct 2020 06:51 AM (IST)
बांसुरी की धुन पर धवल चांदनी में साकार होगा महारास
बांसुरी की धुन पर धवल चांदनी में साकार होगा महारास

संवाद सहयोगी,गोवर्धन (मथुरा):

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बांसुरी के सुरों से स्पंदित माहौल, आसमान से धवल चांदनी बिखेरता चंद्रमा, इस तेज को निस्तेज करता चंद्र सरोवर का श्रृंगार। सरोवर के चारों ओर 'रास बिहारी' के साथ झूमतीं गोपियां। परासौली की दिव्य धरा पर शुक्रवार शरद पूर्णिमा पर महारास की लीला जीवंत नजर आएगी।

परासौली के बारे में मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने यहां महारास किया था। गोवर्धन से भरतपुर मार्ग पर करीब दो किमी दूर परासौली गांव हैं। यह महाकवि सूरदास की साधना स्थली के रूप में भी विख्यात है। इसी गांव में है चंद्र सरोवर। शुक्रवार को यहां महारास का आयोजन होगा। रासलीला के कलाकार इसे जीवंत करेंगे। इसके लिए स्थली में विशेष रोशनी और संगीत का प्रबंध किया गया है। आयोजक देवेंद्र शर्मा ने बताया कि पूर्णिमा के दिन चांदनी की शीतल दिव्यता में भव्यता के रंग बिखरे नजर आएंगे। आन्यौर निवासी ओम प्रकाश कौशिक ने बताया कि महारास के दिन चंद्र सरोवर पर 51 सौ दीप प्रज्वलित किए जाएंगे। जितनी गोपी उतने कन्हैया: कन्हैया ने अनेक गोपियों को एक साथ सामीप्य और स्पर्श का अहसास कराने को महारास रचाया। श्रीकृष्ण की बांसुरी धुन पर खिची आई गोपियां का प्रेम नृत्य ही महारास का स्वरूप है। महारास स्थली के उपासक भागवत किकर गोपाल प्रसाद उपाध्याय बताते हैं कि दिव्य महारास के सम्मोहन ने वक्त को भी ठहरने पर मजबूर कर दिया। कथा है कि चंद्रमा के द्रवित रस से ही परासौली में चंद्र सरोवर का निर्माण हुआ। वराह पुराण में परासौली का परस्पर वन नाम उल्लखित है। गर्ग संहिता में चंद्र सरोवर का विशेष महात्म्य बताया गया है। महाप्रभु बल्लभाचार्य जी के मतानुसार परासौली वही पवित्र भूमि है, जहां प्रभु ने छह महीने की रात्रि का निर्माण कर महारास किया।


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