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यारी हो तो ऐसी, 72 साल बाद भी नई जैसी

पांच दोस्तों की बचपन से शुरू हुई यारी अब तक कायम शहर अलग-अलग लेकिन हर रोज लेते खैर खबर

By JagranEdited By: Published: Sun, 04 Aug 2019 12:35 AM (IST)Updated: Sun, 04 Aug 2019 06:26 AM (IST)
यारी हो तो ऐसी, 72 साल बाद भी नई जैसी
यारी हो तो ऐसी, 72 साल बाद भी नई जैसी

गगन राव, मथुरा: यारी हो तो ऐसी। पांच दोस्तों ने प्राइमरी से लेकर यूनिवर्सिटी तक साथ पढ़ाई की। कुछ ने तो नौकरी भी साथ की। खास बात है कि लगभग 72 वर्ष की उम्र भी मिलना-मिलाना कायम बना हुआ है।

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डॉ. हरिमोहन माहेश्वरी, सुबोध कुमार आर्य, रघुनाथ प्रसाद अग्रवाल, डॉ. उमेश चंद अग्रवाल और विक्रम सिंह ऐसे ही दोस्त हैं। हालांकि यह संख्या पांच से बढ़कर सात दिखती, लेकिन दुर्भाग्यवश दो दोस्त डॉ. सुभाष चंद सिधवानी 14 वर्ष और श्याम बिहारी शर्मा दो साल पूर्व स्वर्ग सिधार चुके हैं।

दोस्ती की नींव दामपुर, जिला बिजनौर से पड़ी। प्राइमरी में सभी का दाखिला हुआ। कक्षा में बच्चे काफी थे, लेकिन इन दोस्तों की आपस में खूब जमने लगी। दोस्ती इंटर तक जा पहुंची उसके बाद पंतनगर यूनिवर्सिटी से साइंस में स्नातक की डिग्री ली। यहां से अलग-अलग क्षेत्र में नौकरी करने लगे। समय के साथ अलग-अलग शहरों में जा बसे। पूर्व चीफ वेटेरिनरी ऑफिसर डॉ. हरिमोहन(72) डेंपियर नगर मथुरा आ बसे। शहर अलग होने के बाद भी मिलना-जुलना कम न हुआ। पहले फोन पर बात करते थे। अब वाट्सएप पर चैटिग और वीडियो कॉलिग का सिलसिला शुरू हो गया। आज भी सब एक-दूसरे की खैर-खबर रोज पूछते हैं। प्राइमरी से शुरू हुआ सफर अब तक कायम है। ऐसी दोस्ती किसी-किसी को मिलती है। हम सब एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ खड़े रहते हैं।

डॉ. हरिमोहन, डेंपियर नगर मथुरा

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नसीब वालों को ही ऐसी दोस्ती नसीब होती है। कई यारी बीच में ही टूट जाती हैं। यहां ऐसा बिलकुल नहीं रहा। समय-समय पर मिलते रहते हैं।

रघुनाथ प्रसाद अग्रवाल, गाजियाबाद

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इस दोस्ती को कायम रखने में सभी का बड़ा योगदान रहा है। सबके साथ के बिना इतना लंबा सफर चलना संभव नहीं था। यह दोस्ती फ्रेंडशिप डे को साकार करती है।

डॉ. उमेश चंद्र अग्रवाल, दिल्ली

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दोस्ती निभाने के लिए किसी खास दिन की आवश्यकता नहीं होती है। यह कभी भी हो सकती है। बस जरूरत होती है, सही और अच्छी नियत की।

विक्रम सिंह, मेरठ

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हमारे फ्रेंडशिप ग्रुप की हमारे जानने वाले मिसाल देते हैं क्योंकि हम सुख-दुख में एक-दूसरे के साथ हमेशा खड़े होते हैं। दोस्ती में यही होना चाहिए।

सुबोध कुमार आर्य, प्रयागराज


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