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श्रीकृष्ण जन्मभूमि के कण-कण में रमे रहेंगे विष्णु हरि डालमिया

डालमिया के निधन पर ब्रज में शोक की लहर, मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ गोसेवा व नारायण सेवा में रहा जीवन पर्यत योगदान

By JagranEdited By: Published: Thu, 17 Jan 2019 12:02 AM (IST)Updated: Thu, 17 Jan 2019 12:02 AM (IST)
श्रीकृष्ण जन्मभूमि के कण-कण में रमे रहेंगे विष्णु हरि डालमिया
श्रीकृष्ण जन्मभूमि के कण-कण में रमे रहेंगे विष्णु हरि डालमिया

मथुरा, जासं। विश्व ¨हदू परिषद के पूर्व अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष और कृष्ण जन्मभूमि में तन, मन और धन से सेवा करने वाले 91 वर्षीय विष्णु हरि डालमिया का बुधवार को दिल्ली में निधन हो गया। जन्मभूमि के जीर्णोद्धार के साथ ही गायों और दरिद्र नारायण की सेवा में वे जीवन पर्यत संलग्न रहे। उनके निधन से मथुरावासी शोक में डूब गए। जन्मभूमि परिसर के आसपास का बाजार बंद रहा।

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लंबे समय से बीमार चल रहे डालमिया ने दिल्ली के गोल्फ लिंक स्थित आवास पर बुधवार को सुबह 9.38 बजे अंतिम सांस ली। शाम करीब चार बजे निगम बोध घाट पर अंतिम संस्कार किया गया। डालमिया श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के अग्रणी नेताओं में से थे। लंबे समय तक श्रीकृष्ण जन्मस्थान के प्रबंधन्यासी रहे। उनके निकटस्थ जनों के अनुसार महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के बाद अगर कोई जन्मभूमि के कर्ताधर्ताओं में याद किया जाता है तो वो है डालमिया परिवार। इनके पिता जयदयाल डालमिया और बेटे विष्णु हरि का योगदान अभूतपूर्व कहा जाएगा। मालवीय की प्रेरणा से अगर दोबारा मंदिर स्थापित हुआ तो निर्माण की भव्यता और प्रकल्प सब इसी परिवार की देन कहा जाता है। जन्मभूमि की ईंट-ईंट भी इसकी गवाही देती है।

इस तरह की कारसेवा

जानकार बताते हैं कि वर्ष 1944 में महामना द्वारा रजिस्ट्री कराई गई, लेकिन स्वास्थ्य खराब होने की वजह से वे निर्माण नहीं करा सके। इसके चलते उन्होंने जुगलकिशोर बिड़ला को जिम्मेदारी सौंपी। उन्होंने 1950 में ट्रस्ट बनाया। इसके तीन साल बाद अखंडानंद द्वारा फावड़ा चलाकर कारसेवा का शुभारंभ किया गया। वर्ष 1957 में बिड़ला ने डालमिया परिवार से मंदिर निर्माण कराने का आग्रह किया। जयदयाल डालमिया ने मां के नाम से केशवदेव जी का मंदिर बनवाया। इसमें एक वर्ष का समय लगा। इसके बाद कई साल कार सेवा चली।

भागवत भवन का किया निर्माण

वर्ष 1962 में भागवत भवन का निर्माण होना शुरू हुआ। इसमें करीब 20 वर्ष का समय लगा। इसी दौरान गेस्ट हाउस, चिकित्सालय भी साथ-साथ तैयार होते गए। इसके बाद गायों और दरिद्र नारायण की सेवा में भी प्रमुख भूमिका रही। उनके प्रकल्पों में मृत गायों की भूसमाधि, निराश्रित शवों का विधि-विधान से अंतिम संस्कार, निश्शुल्क दवा वितरण जैसे कार्य अभूतपूर्व रहे।

पिछले कई सालों से स्वास्थ्य खराब होने के बावजूद उनकी सेवा में कोई कमी नहीं रही। खास बात यह थी कि उन्होंने कभी अपने काम का प्रचार करना पसंद नहीं किया।


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