मोटी फीस के बाद किताबों और ड्रेस में कमीशन
मथुरा: जिले में संचालित हो रहे सीबीएसई व आइसीएसई स्कूल में पढ़ने वाले फीस और पुस्तकों की मंहगाई से परेशान हैं।
जागरण संवाददाता, मथुरा: जिले में संचालित हो रहे सीबीएसई व आइसीएसई स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के बलबूते संचालक मालामाल हो रहे हैं। विद्यार्थियों की किताबों व ड्रेस के नाम पर ही करोड़ों रुपये का खेल विद्यालय संचालक कर रहे हैं। पहले से तय दुकानदारों से किताबे खरीदवाई जा रही हैं, जिसमें इन्हें घर बैठे कमीशन मिल रहा है। ड्रेस और जूते-मोजे भी कमीशन के खेल से बचे नहीं हैं।
जिले में सीबीएसई व आइसीएसई के करीब 90 स्कूल संचालित हैं। इनमें करीब एक लाख की संख्या में बच्चे अध्ययन कर रहे हैं। नया सत्र शुरू होने को है तो विद्यालय संचालकों ने भी अभिभावकों की जेबों पर डाका डालने का इंतजाम कर दिया है। शहर के भैंस बहोरा, आर्य समाज, छत्ता बाजार, महोली रोड, सिविल लाइंस, कृष्णा नगर व धौलीप्याऊ आदि क्षेत्रों में दुकानें सज गई हैं। विद्यालय में पहले एडमीशन फीस, एनुअल फीस व ट्यूशन फीस के नाम पर मोटी रकम वसूली जा रही है। अब कॉपी-किताबें और फिर स्कूल की ड्रेस खरीद में उनकी जेब ढीली होना तय है।
जीएसटी के कारण भी इस वर्ष से स्कूली सामग्री मंहगी हो गई है। स्कूल संचालकों का तर्क है कि बिजली का बिल बढ़ा है। अच्छे टीचर भी रखने हैं और सारी सुविधाएं भी देनी हैं। ऐसे में सुचारू कर पाना काफी मुश्किल होता है।
ऐसे आता है किताबों में कमीशन
कमीशन पाने की चाह में संचालक ऐसे दुकानदारों से से¨टग बैठाते हैं, जो उन्हें बिक्री में मोटा मुनाफा दे। खेल सीधा पब्लिकेशन से शुरू होता है। यहां 50 रूपये कीमत की किताब पर 300-400 रूपये मूल्य अंकित कर बाजार में बेची जाती है। दुकानदार को यह किताब करीब 125-150 रुपये की मिलती है, जिसके लिए वह स्कूल संचालक से 200-250 रुपये में ठेका ले लेता है। संचालक इस किताब को पूरी कीमत पर विद्यार्थी को बेचते हैं। यह कमीशन किताबों के प्रति सेट की कीमत का करीब 30 से 40 फीसद तक का तय होता है।
जूतों में भी करोड़ों की कमाई
अभिभावकों से लूट का सिलसिला जूता खरीद में भी चल रहा है। कुछ स्कूलों ने तो बकायदा जूतों के डिजाइन के साथ कंपनी व विक्रेता तय कर रखे हैं। इसमें भी भारी कमीशन का खेल है। कुछ विद्यालयों ने सिर्फ ब्रांडेड जूते पहनाने का दबाव अभिभावकों पर बना रखा है। बाजार में इस तरह के एक जोड़ी जूते की कीमत 200 से 800 रुपये निर्धारित है। इनमें करीब 10 से 15 प्रतिशत तक का कमीशन है। अनुमान है कि संचालक जूता बिक्री में ही करीब एक करोड़ का कमीशन हासिल कर रहे हैं।
ड्रेस व टाई में 20 फीसद
पहले टैक्स की श्रेणी से बाहर रहे रेडीमेड वस्त्र यानि ड्रेस अब जीएसटी लगने के कारण इसके दायरे में आ गए हैं। असर सिर्फ अभिभावकों पर पड़ रहा है। दुकानों पर कपड़े की क्वालिटी के अनुसार दाम लिए जा रहे हैं। फिलहाल गर्मी की ड्रेस यहां मौजूद हैं। कक्षा एक से पांच तक के बच्चों की ड्रेस 450 से लेकर 800 तक तथा कक्षा छह से 12 वीं तक के विद्यार्थियों की ड्रेस करीब एक हजार से पंद्रह सौ तक में मिल रही है। टाई की कीमत भी 50 से लेकर 150 रुपये तक है। प्रति बिक्री पर करीब 20 प्रतिशत कमीशन संचालकों को मिल रहा है।
फीस पर फीस दिए जाओ
विद्यालयों में तरह-तरह की फीस के नाम पर अभिभावकों से वसूली की जा रही है। एडमीशन के नाम पर प्रतिवर्ष 1000 से 3000 रुपये तक फीस ली जा रही है। प्रोजेक्ट फीस, परीक्षा फीस, कंप्यूटर लैब, सेलिब्रेशन, एनुअल फीस, वाहन फीस, टर्म फीस, वार्षिक चार्ज व ट्यूशन फीस, शैक्षणिक फीस आदि के नाम पर करीब 4000-5000 रुपये तक वसूले जा रहे हैं।
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प्रतिवर्ष किसी न किसी रूप में फीस वृद्धि हो रही है। किताबों की दुकानें भी फिक्स है। कुछ चु¨नदा दुकानों पर ही किताबें मिल रहीं हैं। किताबों, ड्रेस आदि पर हर साल करीब पंद्रह हजार रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं।
अनिल अरोड़ा
अभिभावक
पढ़ाई पर बच्चों के खर्चे लगातार बढ़ते जा रहे हैं। बच्चों का खर्च वहन करना भारी हो रहा है। साथ ही घर भी चलाना है। थोड़ी सी आय में इन सब चीजों को संभालकर चलना बहुत मुश्किल हो रहा है।
महेश सोनिया, अभिभावक