आंखों में कैद सपने, दिल में टूट रहे अरमान
ईंट पाथते बीत रही भट्ठा मजदूर के बचों की जिदगी स्कूल से दूर बचों को घर चलाने की चिता
अभय गुप्ता, (मथुरा)सुरीर : मैं खिलौने की दुकानें देखता ही रह गया, और फूल से बच्चे मेरे सयाने हो गए। ये स्याह सच है, उस बचपन का जो मुफलिसी में बीतता है, जिस उम्र में हाथ कलम और किताबें थामते हैं, उस उम्र में बचपन परिवार का हाथ बंटाता है। बिहार नालंदा के बरनोसा गांव निवासी राजू पत्नी प्रमिला और पांच बच्चे के साथ एक माह से सुरीर क्षेत्र के ईंट भट्ठे पर मजदूरी कर रहे हैं। पांचवीं तक पढ़े राजू की पत्नी अंगूठाटेक हैं, तो गरीबी के फेर में फंसे बच्चे भी स्कूल का अब तक मुंह नहीं देख पाए। ये हाल तब है, जब सबसे बड़े बेटे रवि की उम्र 13 साल है। पांच बरस का सबसे छोटा बेटा सोहन भी स्कूल जाने की उम्र पार कर गया, लेकिन मजबूरी ने पैर जकड़ रखे हैं। राजू के दिल में भी अरमान बच्चों को पढ़ाकर अफसर बनाने के पल रहे हैं, लेकिन खाली हाथ दिल में ही अरमान तोड़ देते हैं। ईंट भट्ठे पर रोज सुबह मां-बाप के साथ पांच बच्चे भी जुटते हैं, जो पैसा मिलता है, उससे घर का चूल्हा जलता है। ये पीड़ा अकेले राजू की नहीं है, राजू जैसे न जाने के कितने मजदूरों के बेटे पढ़ने नहीं जा पाते। पढ़ने की उम्र में उन्हें कमाने की चिता सताती है। कान्हा की नगरी में छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड समेत अन्य प्रदेशों से हजारों मजदूर ईंट भट्ठे पर मजदूरी करने आते हैं।