जानें मथुरा एससी-एसटी एक्ट मामले में किस तरह जागा लालच का शैतान
मथुरा में जब मुआवजे में साढ़े आठ लाख मिले तो लालच का शैतान जाग उठा। उसने बेटे की हत्या की और ब्राह्मण परिवार के छह लोगों को फंसा दिया।
मथुरा (योगेश जादौन)। नौहझील ब्लॉक के भैरई गांव के ब्राह्मण परिवार ने एससी-एसटी एक्ट का दोहरा दंश झेला है। गांव की एससी महिला ने पहले पति की हत्या में इस परिवार के युवक को जेल भिजवाया। मुआवजा में साढ़े आठ लाख मिले तो लालच का शैतान जाग उठा। उसने देवर के साथ मिल कर बेटे की हत्या की। फिर इस इल्जाम में ब्राह्मण परिवार के छह लोगों को फंसा दिया और सवा चार लाख रुपये मुआवजा हासिल कर लिया। बालक की हत्या की जांच में निर्दोष निकला परिवार अब पहले मामले की भी पुनर्विवेचना चाहता है। उप्र एसी-एसटी आयोग के अध्यक्ष ब्रजलाल ने डीएम को आदेश दिया है कि वह हत्यारोपित महिला से एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत लिए गए मुआवजे की रकम की वसूली करें।
कई दिन तक खाना नहीं खा सके सहमे बच्चे
पीडि़त परिवार ने महीने भर तक जो संत्रास भोगा है वह किसी भयावह यातना से कम नहीं। लोगों की शंकालु नजरों और पुलिस के असहज सवालों से जुझते परिवार के बच्चे भी डर के चलते कई दिनों तक ठीक से खाना नहीं खा सके। परिवार के बड़े-बुजुर्गों की तो मानो नींद ही उड़ गई। पीडि़त परिवार के मुखिया बनवारी लाल ने बताया कि बच्चे की हत्या में घर की दो महिलाओं सहित छह लोगों को फंसाया गया। उसके निर्दोष होने की गुहार किसी ने नहीं सुनी। तब नरवारी और नौहवारी समाज से गुहार लगाई। पंचायत जुटी और पुलिस पर निष्पक्ष जांच का दबाव बना। बनवारी लाल की पत्नी निमेश देवी का कहना है कि उसके बड़े बेटे मुकेश को हत्यारोपित महिला ने साजिशन पति की हत्या कर फंसाया है। इसकी भी नए सिरे से जांच होनी चाहिए। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक बबलू कुमार का कहना है कि सुभाष की मौत का मामला बिल्कुल साफ है। अब तक इस पर किसी ने आपत्ति नहीं की है। अब अगर कोई आपत्ति करता है तो पुनर्विवेचना भी एक प्रक्रिया है। आवश्यक होने पर उसे कराया जा सकता है।
यह था मामला
भैरई गांव के एससी समाज के सुभाष का बनवारी के लड़के मुकेश पंडित से 10 अप्रैल को विवाद में मारपीट हो गई। दो दिन बाद 12 अप्रैल को सुभाष की मौत हो गई। मुकेश इस मामले में जेल में है। 19 जुलाई को गुड्डी का छह वर्षीय बालक ङ्क्षप्रस गायब हो गया। 20 जुलाई को एक कुएं में उसका शव मिला। इसमें गुड्डी ने बनवारी के परिवार के छह लोगों को आरोपित किया। पुलिस की पड़ताल में पता चला कि बच्चे की हत्या गुड्डी ने अपने देवर के साथ मिलकर की थी।
आयोग में 10 फीसद शिकायतें झूठी
गोंडा में दुर्घटना की एक घटना में घायल हुए एससी-एसटी व्यक्ति के जरिये सामान्य जाति के दबंग व्यक्ति ने अपने दुश्मन के खिलाफ ही रिपोर्ट दर्ज करा दी। आर्थिक सहायता व कार्रवाई की गुहार लेकर जब रिपोर्ट दर्ज कराने वाला पक्ष उप्र अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग पहुंचा तो जांच में कलई खुल गई। आयोग में आने वाली फरियादों में 10 फीसद से अधिक मामले झूठे पाये जा रहे हैं। आयोग के अध्यक्ष बृजलाल ने ऐसे मामलों पर कड़ा रुख अपनाया है। मथुरा में बेटे की हत्या करने के बाद एक परिवार के खिलाफ झूठी एफआइआर दर्ज कराने वाली महिला पर आयोग की सख्ती इसकी ताजा नजीर है।
बाइक-साइकिल टक्कर में एससी-एसटी एक्ट
आयोग अध्यक्ष कहते हैं कि हत्या जैसे संगीन अपराध में एक्ट को हथियार की तरह इस्तेमाल करना बेहद गंभीर है। यही वजह है कि आयोग ने प्रकरण में झूठी रिपोर्ट दर्ज कराने और आर्थिक सहायता हासिल करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने का आदेश दिया है। बृजलाल बताते हैं कि शुक्रवार को ही आयोग में गोंडा के मामले की सुनवाई थी। बाइक-साइकिल टक्कर में जब घायल एससी-एसटी की मेडिकल रिपोर्ट का गहनता से परीक्षण कराया गया और एएसपी को तलब कर स्थिति पूछी गई तो सच सामने आया।
जानें बांदा में जहर देकर मारने की कहानी
बृजलाल ने बताया कि आयोग के सामने बांदा का एक ऐसा प्रकरण आया, जिसमें जहर देकर हत्या करने का आरोप लगाया गया। एक साल पहले एक अनुसूचित व्यक्ति की शराब से मौत हो गई थी, जिसमें हत्या की एफआइआर दर्ज कराई गई। शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं था, लिहाजा विसरा की जांच कराई गई। जांच में शराब पीने से मौत की पुष्टि हुई। दोनों ही मामलों में कार्रवाई कर मदद की गुहार लगाने वालों को चेतावनी दी गई। कई मामलों में निजी स्वार्थ के लिए एक्ट के दुरुपयोग की बात सामने आई है। मेरे कार्यकाल में 500 केसों का निस्तारण किया गया है, जिनमें 10 फीसद से अधिक मामलों को झूठा पाकर खारिज किया गया। आयोग में करीब 450 मामले लंबित हैं, जिनकी सुनवाई चल रही है।
केवल एफआइआर से कोई मुल्जिम नहीं : बृजलाल
उप्र एससी-एसटी आयोग अध्यक्ष बृजलाल ने बताया कि केवल एफआइआर दर्ज होने से कोई मुल्जिम नहीं हो जाता। एफआइआर का मतलब सही एफआइआर होता है। रिपोर्ट जिलों में लिखी जाती है। मामला आयोग में तब आता है, जब किसी को वहां न्याय नहीं मिलता। इनमें आर्थिक सहायता न मिलने, एफआइआर पर कोई कार्रवाई न होने व मुकदमा न लिखे जाने की शिकायतें शामिल होती हैं। जमीन पर कब्जे की शिकायतें भी लगातार आती हैं। आयोग में आने वाली इन शिकायतों की सुनवाई में करीब 10 से 15 फीसद जो मामले गलत पाये जाते हैं, उन्हें खारिज कर दिया जाता है। झूठे मामलों में कार्रवाई का आदेश दिया जाता है। मथुरा जैसे जो भी गंभीर प्रकरण आयेंगे, उन्हें आयोग सीधे हस्तक्षेप कर झूठी रिपोर्ट दर्ज कराने वालों पर कार्रवाई करायेगा।