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बाबुल की राह देख रही बबलू की बेटी

आठ साल के बेटे की यादों में हैं दो साल पुराने नजारे, बोला पढ़-लिखकर सेना में जाऊंगा और लूंगा पापा का बदला

By JagranEdited By: Published: Tue, 31 Jul 2018 11:50 PM (IST)Updated: Tue, 31 Jul 2018 11:50 PM (IST)
बाबुल की राह देख रही बबलू की बेटी
बाबुल की राह देख रही बबलू की बेटी

कृष्ण बिहारी शर्मा, मथुरा: आतंकवादी हमले में कुपवाड़ा में मारे गए शहीद बबलू को गुजरे दो साल हो गए। उनकी बेटी अब स्कूल जाने लगी है, लेकिन मासूम को आज भी अपने पिता के लौट आने का इंतजार है। पूछने पर बताती है कि पिता ड्यूटी पर हैं। बबलू का बेटा समझदार है। जानता है कि पिता देश के लिए शहीद हो गए। उसकी इच्छा फौज में जाकर पिता के दुश्मनों से बदला लेने की है।

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जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा क्षेत्र में 29 जुलाई-2016 की रात पाक सीमा से घुसपैठ कर रहे आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए झंडीपुर के बबलू ¨सह के गांव में स्मृति दिवस मनाया जा रहा है। ऐसे माहौल में 'दैनिक जागरण' टीम ने गांव में पहुंचकर शहीद के बच्चों का हाल जाना तो उनकी मासूमियत भरी बातें सुन मौजूद लोगों की आंखें भर आईं। शहीद के दो ही बच्चे हैं। आठ साल का बेटा द्रोणा चौधरी और छह साल की बेटी गरिमा चौधरी। बेटा दूसरी क्लास में पढ़ता है और बेटी यूकेजी में। बेटे के जेहन में जरूर दो साल पुरानी यादें ताजा हैं पर बेटी को कुछ भी पता नहीं। पिता के बारे में पूछने पर वह मासूमियत से बोली- पापा ड्यूटी पर गए हैं। रक्षाबंधन पर आएंगे और मेरे लिए खूब खिलौने लाएंगे। सुनकर यही लगा कि पिता के बारे में जैसे उसे कोई यह सब बताकर सांत्वना देता हो। बेटे की स्मृति में पिता की यादें पूरी तरह साफ हैं। उसे एक अगस्त 2016 का वह दिन भी याद है, जब सेना के जवान गांव में उसके पिता का पार्थिव शरीर ताबूत में रखकर लाए थे। भले ही उम्र छोटी है, मगर है बेटा भी पिता की तरह ही निर्भीक। पिता के बारे में पूछने पर तपाक से बोला मेरे पापा शहीद हो गए हैं। मैं अभी पढ़ रहा हूं। बड़ा होकर मैं भी सेना में जाऊंगा और पापा का बदला देश के दुश्मनों से लूंगा।

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इनसेट..

शहादत पर गर्व पर दिलों में दर्द भी

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा..। लगता है अब इन लाइनों के मायने कुछ कम हो गए हैं। बबलू ¨सह की शहादत के स्मृति दिवस पर मंगलवार को गांव झंडीपुर में मेला तो लगा, मगर उसके बंदोबस्त परिजनों ने ही किए। अनुरोध के बावजूद न तो कोई प्रशासन स्तर से मदद हुई और न ही सरकार के नुमाइंदों ने ही पहल की। बबलू के पिता मलूकाराम और भाई सतीश एडवोकेट की बातों में ये दर्द छलका। बोले बबलू ने देश के लिए जान की कुर्बानी देकर उनका सिर फक्र से ऊंचा किया। उस दौरान शासन स्तर से तमाम वादे किए गए, मगर उनमें से पूरे बहुत ही कम हुए। हां, पांच बीघा जमीन जरूर सरकार ने मुहैया करा दी, मगर गैस एजेंसी के लिए दो साल से प्रक्रिया ही चल रही है। स्मारक स्थल पर बबलू की प्रतिमा भी उन्होंने अपने खर्चे से लगवाई है। स्मारक स्थल व पार्क की चाहरदीवारी तक प्रशासन ने नहीं कराई। अब स्मृति दिवस पर जिला अस्पताल की ओर से गांव में स्वास्थ्य शिविर लगवाने के लिए उन्होंने जिलाधिकारी को प्रार्थनापत्र दिया था। जिलाधिकारी ने संस्तुति कर सीएमओ को प्रेषित करा दिया, मगर शिविर का कोई बंदोबस्त नहीं हुआ। हां, प्राइवेट संस्थानों ने जरूर शिविर लगवा दिया है। मुख्य आयोजन बुधवार को गांव में होगा। इसका खर्च वे खुद वहन कर रहे हैं। हां, मथुरा छावनी के मिलिट्री अफसरों ने जरूर इसमें शिरकत करने व शिविर आदि लगाने की सहर्ष सहमति दी है।


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