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भगवान राम का भी है त्रेतायुग से राधा की नगरी बरसाना से अनूठा वास्‍ता, जानिए क्‍या है यहां का इतिहास

बरसाना को कहा जाता था पहले बृहत्सानुपुर। त्रेतायुग में की गयी थी बरसाना की स्थापना। सूर्यवंशी कुल में जन्मीं थी बृषभान दुलारी।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Wed, 26 Aug 2020 08:48 PM (IST)Updated: Wed, 26 Aug 2020 08:48 PM (IST)
भगवान राम का भी है त्रेतायुग से राधा की नगरी बरसाना से अनूठा वास्‍ता, जानिए क्‍या है यहां का इतिहास

मथुरा, किशन चैहान। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के वंशज सूर्यवंशी राजाओं द्वारा स्थापित बरसाना धाम उस काल में बृह्त्सानुपुर के नाम से विश्व विख्यात हुआ करता था। बृहत्सानुपुर की स्थापना राजा दिलीप के परपौत्र रसंग ने त्रेतायुग में की थी। उस समय यह एक समृद्धशाली नगर के रूप में विराजमान था। सूर्यवंश की उसी शाखा में राजा बृषभान जी हुए थे। जिनकी पुत्री के रूप में राधारानी प्रकट् हुई थी।

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बरसाना का इतिहास बहुत पुराना है, जहां एक और भगवान श्रीकृष्ण ने चन्द्रवंश में जन्में तो वही उनकी प्राण प्रिय राधारानी ने सूर्यवंश में जन्म लिया। आज से हजारो बर्षो पूर्व गौ भक्त राजा दिलीप के पुत्र धर्म के कुल में पैदा हुए रसंग ने बरसाना को बसाया था। एक बार जब मथुरा के राजा लवाणासुर का वध करने के लिए राम ने शत्रुधन को मथुरा भेजा था। तो उनके साथ रसंग भी यहां आया था। रसंग अपने पूर्वज राजा दिलीप की तरह गौ भक्त थे, वह गौ चराते हुए मथुरा से काफी दुर निकल आये थे। उन्हें एक सुन्दर स्थान दिखाई पड़ा जहां यमुना बह रही थी और वन उपवन में पक्षी महक रहे थे। रसंग को यह जगह इतनी भायी की वो यही पर बस गए। उसी सूर्यवंशी रसंग के कुल में आज से साढ़े पांच हजार बर्ष पूर्व बृषभान जी ने जन्म लिया था। वह लगभग पांच हजार बर्ष पूर्व तक इस ब्रजभूमि के शासक रहे है। बृषभान जी अति मधुर एवं सत्य निष्ठा तथा न्याय प्रिय और गौ भक्त राजा थे। इसी कारण स्वयंं कंस भी उनका आदर करता था। सन् 1017 ई. तक बरसाना एक समृद्धशाली नगर हुआ करता था। लेकिन कालान्तर में इसे खूब लूूटा व तोड़ा गया। जिसके कारण यह नगर से मात्र एक छोटे गांव के रूप में रह गया था। आज भी यहां की भूमि में बड़ी ही दूर-दूर तक ईंट के आकार की बड़ी बड़ी शिलाएं निकलती है। उस परम कृपा मयी महाशक्ति श्रीराधा ने अपने मैया और बाबा के विशुद्ध प्रेम को पहचान कर बृज में अनेक बार अवतार लिया।

ब्रज के रावल, प्रेम सरोवर तथा बरसाना में, लेकिन ग्रंथो के अनुसार पुराना रावल बरसाना ही था। जिसका प्रमाण आज भी है, राजा बृषभान जी द्वारा स्थापित ब्रजेश्वर महादेव आज भी स्थापित और पूजित है। जो कृपा की सागर राधा रानी के ध्यान में निम्न रहते है। यहां तक कभी-कभी साधु का रूप धारण करके श्रीजी के निज में महल में उनके दर्शन करने के लिए जाते है। यह क्षेत्र आज भी रावल या रावड़ी के नाम से प्रसिद्ध है। परन्तु शास्त्रों में इसे रावलवन कहते है। बताया जाता है की पांच हजार बर्ष पूर्व इस रावल वन में बृषभान जी का महल हुआ करता था। यमुना पार जिस स्थान को रावल माना जाता है, वहां कुछ समय के लिए बृषभान जी ने निवास किया था। जिसके कारण इसका नाम भी रावल पड़ गया था। कस्बे के ज्योतिषाचार्य रामशरण त्रिपाठी ने बताया कि श्वेत बाराह कल्प के इस आठ्ाइसवें द्वापर में राधिका जूॅ का प्राकट्य हुआ था। इसीलिये बरसाना की महिमा आज भी सबसे अधिक है। तत्पश्चात अबतक जितनी बार राधा एवं कृष्ण ने ब्रज में अवतार लिया। वह सभी विष्णु के ही द्वारा प्रकट माने जाते रहे है। परन्तु इस बार आविर्वभूवुः प्रकुति बृहम विष्णु शिवदायः। अतः वह साक्षात परम ब्रह्म ही राधा एवं कृष्ण के रूप में प्रकट हुए थे। यहां तक इस बार तो गोलोक वासिनी मूल राधा ही बरसाना में स्वयं अवतरित हुई है। जो दुर्लर्भातिदुर्लभ महासंयोग रहा है।

साधारण नहीं थे बृषभान व कीरत

राजा बृषभान कोई साधारण पुरूष नहीं थे क्योंकि वो पहले जन्म में राजा नृग के पुत्र महाभाग सुचन्द्र के नाम से विख्यात थे कहा जाता था कि राजा सुचन्द्र भगवान बिष्णु के अंश अवतार थे। राजा सुचन्द्र का विवाह मानसी पितर कन्या कलावती से हुआ था। राजा सुचन्द्र अपनी पत्नी कलावती को साथ लेकर गोमती के तटपर नैमिष नामक वन में बारह बर्ष तक ब्रह्म्मा जी की तपस्या की थी। राजा सुचन्द्र के तप से ब्रहम्मा जी प्रसन्न हुए और वर मांगने को कहा, राजा सुचन्द्र ने मोक्ष प्राप्ति का वर मांग लिया। जिसे सुनकर रानी कलावती व्याकुल व दुखी होकर कहा हे पितामह पति ही नारियों के लिए सर्वोत्कृष्ट देवता माना गया है। यदि आप में पतिदेव को मुक्ति प्राप्त कर रहे हो तो मेरी क्या गति होगी। इनके बिना में जीवित नहीं रहुंगी और मैं पतिसाहचार्य में विक्षेप पड़ने के कारण आप को शाप दूंगी। ब्रह्म्मा जी ने कहा देवी मैं आपके श्राप के भय से जरूर डरता हूं लेकिन मेरा दिया हुआ वर विफल नहीं हो सकता है इसीलिए तुम अपने प्राण प्रिय के साथ स्वर्ग में जाकर वहां सुख भोगो और कालान्तर में पृथ्वी पर तुम्हारा दुवारा जन्म होगा। द्वापरयुग के अन्त में भारतबर्ष में गंगा व यमुना के बीच तुम्हारा जन्म होगा और तुम दोनों के यहां परिपूर्णतम दिव्य शक्ति श्रीराधाजी पुत्री के रूप में प्रकट्य होगी। ब्रह्म्मा जी के दिव्य व अमोध वर से सुचन्द्र व कलावती भूलोक पर कीरत व बृषभानु के रूप में हुए। कीरत कन्याकुंज देश(कन्नौज) में राजा भलन्दन के यज्ञकुण्ड से प्रकट हुई और सुचन्द्र गोपो के राजा सुरभानु के घर जन्में। उस समय वे बृषभानु के नाम से विख्यात हुए। राजा सुचन्द्र व कलावती को अपने पूर्व जन्म की स्मृति थी। बृषभानु जी गोपो में श्रेष्ठ होने के साथ ही कामदेव के समान परम सुन्दर थे। बृषभानु व कीरत का विवाह परम बुद्धिमान नन्दराय जी कराया था।

कभी संस्कृत का केन्द्र था बरसाना

बृषभान नंदनी का निज धाम बरसाना कभी बनारस की भांति कालान्तर में संस्कृत भाषा का केन्द्र हुआ करता था। कस्बे के ब्रह्म्माचंल पर्वत के चार शिखरों पर राधाकृष्ण के लीलास्थली है। जिनमें मानगढ़, विलासगढ़, ़ भानगढ़ व दानगढ, भानगढ़ के शिखर पर राधारानी का निज महल है जबकि अन्य शिखरों पर भी उनके मन्दिर बने हुए है। मान्यता है कि कालान्तर में दानगढ़ शिखर पर संस्कृत विद्यालय हुआ करता था। जहां कई ऋषि मुनियों ने संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किया था। 


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