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अहंकार और अधर्म के पतन का पर्व है विजयदशमी

मैनपुरी जासं रविवार को शहर के आदिनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में आचार्य विराग सागर के शिष्य ने दशहरा का महत्व बताया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Oct 2020 05:32 AM (IST)Updated: Mon, 26 Oct 2020 05:32 AM (IST)
अहंकार और अधर्म के पतन का पर्व है विजयदशमी

मैनपुरी, जासं : रविवार को शहर के आदिनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में आचार्य विराग सागर के परम प्रभावक शिष्य विशोक सागर महाराज और क्षुल्लक विश्वरक्ष सागर ने दशहरा पर्व का महत्व बताया।

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जैन मुनियों ने कहा कि अध्यात्म, धर्म, पर्व, त्योहार और मेले हमारी भारतीय संस्कृति और सामाजिक मान्यताओं के अभिन्न अंग हैं। हमारे सभी मुख्य पर्वों और त्योहारों का संबंध हमारे अवतारों व महापुरुषों से है। हमारी संस्कृति में धर्म, सत्य, पवित्र आचरण व न्याय को प्रधानता दी गई है, जबकि असत्य व अधर्म के आचरण से दूर रहने को कहा गया है।

उन्होंने कहा कि अहंकार, अधर्म के पतन और सत्य, धर्म की स्थापना का यह पावन पर्व है। जहां प्रभु राम ने धीरता, वीरता, संयम और सरीखे गुण है। वहीं रावण में अहंकार और छल कूट-कूट कर भरा है। श्रीराम में पितृभक्ति कूट-कूट भरी थी। माता कैकेयी ने श्रीराम के लिए 14 वर्ष के वनवास की शर्त राजा दशरथ से मनवाई तो श्रीराम ने पिता के वचन की लाज रखने हेतु बिना संकोच व विरोध के सहर्ष वनगमन स्वीकार कर लिया। पिता की सेवा व उनकी आज्ञा श्रीराम के लिए सर्वोपरि थी।


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