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इन बस्तियों में व्यवस्था बेपर्दा, आज भी गंदगी के ढेर

शहर में लिखा-पढ़ी में तो कोई भी मलिन बस्ती नहीं है लेकिन गंदगी और हालातों की वजह से ककरइया और दरीबा को मलिन बस्ती में ही गिना जाता है। जब भी कोई अभियान चलता है तो अधिकारियों और नेताओं की पूरी टीम यहां पहुंचती है। स्वच्छ भारत अभियान की चर्चा हो या फिर किसी महापुरुष की जयंती नेताओं द्वारा हाथों में झाडू थामकर यहां खूब फोटो खिचवाई जाती हैं। उस समय तो ऐसा लगता है कि मानो कालोनी का सारा कचरा साफ हो जाएगा लेकिन हकीकत में पूरे सिस्टम को आज तक मुंह चिढ़ाती आ रही है। यहां नालियां और नाले सभी गंदगी से बजबजा रहे हैं। खासकर प्लाट अस्थायी डलाबघर बन चुके हैं। व्यवस्था न होने की वजह से लोगों द्वारा गंदगी को यहां फेंका जाता है। नालियों का ढलान भी प्लाटों की ओर ही है। ऐसे में जलभराव की स्थिति भी बनी रहती है। कालोनी निवासी सर्वेंद्र राजेश सिंह और अंगूरी देवी का कहना है कि सफाई व्यवस्था को लेकर कोई खास गंभीरता नहीं दिखाई जाती है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Oct 2021 04:50 AM (IST)Updated: Sat, 23 Oct 2021 04:50 AM (IST)
इन बस्तियों में व्यवस्था बेपर्दा, आज भी गंदगी के ढेर

जासं, मैनपुरी : शहर में लिखा-पढ़ी में तो कोई भी मलिन बस्ती नहीं है, लेकिन गंदगी और हालात की वजह से ककरइया और दरीबा को मलिन बस्ती में ही गिना जाता है। जब भी कोई अभियान चलता है तो अधिकारियों और नेताओं की पूरी टीम यहां पहुंचती है। स्वच्छ भारत अभियान की चर्चा हो या फिर किसी महापुरुष की जयंती, नेताओं द्वारा हाथों में झाडू थामकर यहां खूब फोटो खिंचवाए जाते हैं। उस समय तो ऐसा लगता है कि मानो कालोनी का सारा कचरा साफ हो जाएगा, लेकिन हकीकत में पूरे सिस्टम को आज तक मुंह चिढ़ाती आ रही है। यहां नालियां और नाले सभी गंदगी से बजबजा रहे हैं। खासकर प्लाट अस्थाई डलाबघर बन चुके हैं। व्यवस्था न होने की वजह से लोगों द्वारा गंदगी को यहां फेंका जाता है। नालियों का ढलान भी प्लाटों की ओर ही है। ऐसे में जलभराव की स्थिति भी बनी रहती है। कालोनी निवासी सर्वेंद्र, राजेश सिंह और अंगूरी देवी का कहना है कि सफाई व्यवस्था को लेकर कोई खास गंभीरता नहीं दिखाई जाती है। इनसे सीखें

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शहर के पंजाबी कालोनी निवासी वरिष्ठ साहित्यकार एवं एड. संजय दुबे का कहना है कि व्यवस्था परिवर्तन के लिए हमें अपनी आदतों में परिवर्तन करना होगा। हम अपने घर की दीवारों पर तो लिख देते हैं कि यहां गंदगी फैलाना मना है, लेकिन स्वयं सार्वजनिक स्थानों को गंदा करने से बाज नहीं आते हैं। छोटी-छोटी आदतों में बदलाव करके एक बडे़ बदलाव का आगाज कर सकते हैं। जरूरी नहीं कि हम स्वयं सफाई करने के लिए ही जाएं। शब्दों और दूसरों को प्रेरित करके भी व्यवस्था को दुरुस्त कराया जा सकता है। सावधान

ज्यादातर इन्फेक्शन की वजह गंदगी ही होती है। आमतौर पर हम इसे अनदेखा कर देते हैं, लेकिन जब गंभीर परिणाम सामने आते हैं तो चितित होते हैं। गंदगी से पैदा होने वाले बैक्टीरिया और कई बार वायरस सांसों के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। तुरंत तो हमें किसी समस्या के बारे में पता नहीं चलता, लेकिन धीरे-धीरे इंफेक्शन असर दिखाने लगता है। कई बार तो इसके परिणाम बेहद घातक और जानलेवा भी हो सकते हैं। ऐसे में जरूरी है कि घर के आसपास सफाई रखें और कूड़े का निर्धारित स्थान पर ही निस्तारण कराएं। किसी भी पदार्थ को खाने से पहले हाथों और चेहरे को अच्छी तरह से धोएं।

डा. राज विक्रम सिंह, एपिडेमियोलाजिस्ट जल जमाव बड़ी वजह

जिला मलेरिया अधिकारी एसएन सिंह का कहना है कि इस मौसम में ज्यादातर जल जनित बीमारियां होती हैं। जहां भी जलभराव है, वहां मच्छरों के लार्वा पनपते हैं। बाद में यही लार्वा बडे़ होकर मच्छरों का रूप लेकर बीमारियां फैलाते हैं। डेंगू का प्रकोप रोकने के लिए जरूरी है कि घरों में कूलर, फ्रिज और किसी भी बर्तन में या छत पर पानी का जमाव न होने दें। डेंगू का लार्वा साफ पानी में ही पनपता है। लोगों से अपील है कि वे प्रत्येक सप्ताह घर में ठहरे हुए पानी की जांच करते रहें। अपील

सबसे बड़ी समस्या है कि हम दूसरों की देखा-देखी ही काम करते हैं। यदि किसी एक ने सड़क पर गंदगी फेंकी है तो हम भी वही करते हैं। हमें अपने आप को बदलने की जरूरत है। पहल करें कि गंदगी को हमेशा डस्टबिन में ही डालें ताकि हमें देखकर दूसरे भी कुछ ऐसा ही कर सकें।

नकुल सक्सेना, शिक्षाविद। कार्यदायी संस्थाओं की जवाबदेही निर्धारित होनी चाहिए। जो काम है यदि संस्था के जिम्मेदार उसे जवाबदेही से नहीं निभाते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। वहीं व्यवस्था बेहतर कराने के बाद यदि स्थानीय लोगों द्वारा गंदगी फैलाई जाती है तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए।

विनीत यादव, व्यवसायी। सबसे ज्यादा जरूरी है कि पालिका प्रशासन सार्वजनिक रास्तों पर डस्टबिन रखवाए। यदि पर्याप्त डस्टबिन आबादी के बीच होंगे तो लोग कचरा सार्वजनिक स्थानों पर नहीं फेकेंगे। शहर में डस्टबिन की बेहद कमी है। जहां रखे हैं, वहां उनकी देखरेख पर कोई खास ध्यान नहीं दिया जाता।

प्रखर दीक्षित एड.। जब तक सख्ती नहीं होगी, तब तक व्यवस्था को बेहतर नहीं बनाया जा सकता। कार्यदायी संस्थाएं कागजों पर तो सब कुछ दर्शाती हैं, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं होता। शहर में सबसे पहले कूड़ा उठान की व्यवस्था को बेहतर करने की जरूरत है।

दिनेश यादव, एड.।


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