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नियमों की उड़ीं धज्जियां, नहीं थमा आतिशबाजी का शोर

देवोत्थान एकादशी पर शादियों की धूम रही। बैंड-बाजों के बीच बारात स्वागत के नाम पर आतिशबाजी का कानफोडू शोर भी गूंजता रहा। नियम है कि रात 10 बजे के बाद तेज आवाज वाले पटाखे नहीं चलाए जा सकते हैं। लेकिन, शहर में इस नियम की खूब धज्जियां उड़ीं। देर रात तक आतिशबाजी चलती रही।

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Nov 2018 10:34 PM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 10:34 PM (IST)
नियमों की उड़ीं धज्जियां, नहीं थमा आतिशबाजी का शोर
नियमों की उड़ीं धज्जियां, नहीं थमा आतिशबाजी का शोर

जासं, मैनपुरी : देवोत्थान एकादशी पर शादियों की धूम रही। बैंड-बाजों के बीच बरात स्वागत के नाम पर आतिशबाजी का कानफोडू शोर भी गूंजता रहा। नियम है कि रात 10 बजे के बाद तेज आवाज वाले पटाखे नहीं चलाए जा सकते हैं। लेकिन, शहर में इस नियम की खूब धज्जियां उड़ीं। देर रात तक आतिशबाजी चलती रही।

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देवउठनी एकादशी पर जिले भर में लगभग दो सैकड़ा शादियां संपन्न कराई गईं। शहर में भी शादियों का शोर रहा। सभी मैरिज होम और धर्मशाला में शहनाई गूंजी। बड़ी सहालग होने के कारण मुख्य सड़कों पर जाम के हालात भी बने। विवाह बंधन में शहनाई के शोर के बीच पटाखों की तेज आवाज लोगों का सुकून छीनती रही। रात 10 बजे के बाद तेज आवाज वाले पटाखे चलाने पर पाबंदी है। लेकिन, मैरिज होम संचालकों द्वारा इस नियम को ताक पर रख दिया गया।

शहर में लगभग दर्जन भर मैरिज होम घनी आबादी और कॉलोनियों के बीच बने हुए हैं। ऐसे में देर रात तक तेज आवाज वाले पटाखों के चलने से लोगों को परेशानी हुई। आवास विकास, हरिदर्शन नगर, अवध नगर, देवपुरा में तो पटाखों की धमक की वजह से घरों में कंपन की स्थिति भी बनने लगती है। वर्ष 2017 में शहर के अवध नगर कॉलोनी निवासी विकास तिवारी पुत्र कमल तिवारी के मकान की छत पटाखों की धमक की वजह से धराशायी हो गई थी।

ये है नियम

वर्ष 1999 में केंद्र सरकार ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत पटाखों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण के मानक निर्धारित कर दिए थे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार रात 10 बजे से सुबह छह बजे के बीच पटाखों के उपयोग पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई थी। पूरे देश में यह नियम लागू है। उल्लंघन करने पर सख्त सजा का प्रावधान है।

कितना नुकसानदेह है आतिशबाजी का शोर

जिला अस्पताल के डॉ. गौरव पारिख का कहना है कि एनजीटी द्वारा पटाखों के शोर को निर्धारित कर रखा है। हमारे कानों के लिए 85 डेसीबल तक की आवाज सुरक्षित होती है। पटाखों की आवाज 85 से 120 डेसीबल तक होती है। चिकित्सीय दृष्टिकोण से अगर बात की जाए तो 110 से 115 डेसीबल का शोर कान बर्दाश्त नहीं कर सकते और इस शोर से कानों का परदा फट सकता है।

ये भी है हकीकत

चिकित्सकों का कहना है कि 45 साल की उम्र के बाद सुनने में समस्या शुरू हो जाती है। 15 से 20 वर्ष तक की उम्र में आवाज कानों को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाती है। लेकिन, 60 से 65 साल की उम्र के बाद तेज आवाज कानों को चुभने लगती है। मुख्य अग्निशमन अधिकारी मनु शर्मा का कहना है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाइडलाइन के अनुसार शहर में 12 से 13 गुना ज्यादा शोर है। आबादी क्षेत्र में दिन में 55 डेसीबल और रात में 45 डेसीबल तक शोर होना चाहिए। 'सभी मैरिज होम संचालकों के साथ बैठक कर उन्हें पटाखों का शोर रोकने के लिए कहा गया है। सख्त हिदायत दी गई है कि रात 10 बजे के बाद तेज आवाज वाले पटाखों को चलाने पर पाबंदी लगाएं। जागरूकता के लिए पुलिस भी अभियान चलाकर कार्रवाई करेगी।'

ओमप्रकाश ¨सह

अपर पुलिस अधीक्षक, मैनपुरी।


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