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संस्कारों से ही मिलती है असली सफलता

जागरण की मुहिम संस्कारशाला के तहत बुधवार को शहर के अमन इंटरनेशनल स्कूल में संस्कारों की पाठशाला लगाई गई। बच्चों को विनम्रता का अर्थ समझा बड़ों का आदर और सम्मान करने की सीख दी गई। समझाया गया कि मीठी बोली से हम दूसरों का दिल जीत सकते हैं लेकिन कड़वे शब्द हमेशा हमें दिलों से दूर कर देते हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 03 Oct 2018 11:08 PM (IST)Updated: Wed, 03 Oct 2018 11:08 PM (IST)
संस्कारों से ही मिलती है असली सफलता
संस्कारों से ही मिलती है असली सफलता

जासं, मैनपुरी : जागरण की मुहिम संस्कारशाला के तहत बुधवार को शहर के अमन इंटरनेशनल स्कूल में संस्कारों की पाठशाला लगाई गई। बच्चों को विनम्रता का अर्थ समझा बड़ों का आदर और सम्मान करने की सीख दी गई। समझाया गया कि मीठी बोली से हम दूसरों का दिल जीत सकते हैं लेकिन कड़वे शब्द हमेशा हमें दिलों से दूर कर देते हैं।

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प्रधानाचार्य आरके उपाध्याय ने कहा कि बचपन कच्ची मिट्टी के समान होता है। इस उम्र में हम जो कुछ सीखते हैं, वह ¨जदगी भर हमारा मार्गदर्शन करता है। सबसे जरूरी संस्कार होते हैं। बच्चों की पहली पाठशाला उसका अपना घर होता है। मां संस्कार सिखाती है। लेकिन, विद्यालय में वह ¨जदगी का असली सबक सीखता है। ¨जदगी में सबसे ज्यादा जरूरी होता है दूसरों को सम्मान देना। यदि हम किसी को सम्मान देंगे तो बदले में सामने वाला भी हमें सम्मान देगा। अभिभावकों की भी जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों को ऐसी शिक्षा दें जिससे वे बडे़ बुजुर्गों का सम्मान कर सकें।

उन्होंने कहा कि अक्सर अभिभावक बच्चों को सिखाने के लिए भय का सहारा लेते हैं। भय के बीच बच्चे सीखते नहीं हैं बल्कि उनके मन में डर पैदा हो जाता है। इसकी प्रतिक्रिया भी होती है। बडे़ होकर बच्चों का स्वभाव भी वैसा ही हो जाता है जैसा बचपन में उनके साथ होता है। जरूरी है कि हम उनकी मनोदशा को समझें और उसी के अनुसार उनका पालन-पोषण और शिक्षा दें। ये बोले बच्चे

रोज अपने माता-पिता के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेकर घर से निकलूंगा। हमेशा बड़ों की बात मानूंगा। उनसे कभी कुछ नहीं छुपाऊंगा।

गौतम। पापा हमेशा कहते हैं कि बड़ों का सम्मान करो। उनकी बात कभी नहीं टाली। स्कूल में भी शिक्षकों द्वारा जो बातें सिखाई जाती हैं, उनका हमेशा पालन करूंगा।

सूर्यांश। छोटा भाई कभी-कभी शैतानी करता है तो उसे भी प्यार से ही समझाती हूं। कभी भी झूंठ नहीं बोलती। हर बात मानती हूं, यही वजह है कि घरवाले भी मेरी बात मानते हैं।

वैष्णवी भदौरिया। पापा कहते हैं कि जिद करना बुरी बात होती है। उनकी बात मानकर ही काम करती हूं। मुझे जो चाहिए होता है वो बिना जिद के ही मिल जाता है।

रिचा चौहान।


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