शुल्क के विरोध में गरमाता रहा है मंडी का माहौल
आढ़तियों ने ढाई फीसद शुल्क का किया था विरोध एक दिन रही थी बंदी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों ने भी उठाए सवाल मांगी गारंटी
जासं, मैनपुरी: किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य की अनिवार्यता को लेकर आंदोलित हैं तो आढ़तियों में भी बढ़ाए गए मंडी कर को लेकर आक्रोश है। कोरोना काल की शुरूआत में इसे लेकर मंडी एक दिन बंद भी रही थी। आढ़ती अभी भी इस कर के विरोध में हैं। वह मंडी से आढ़तियों के खत्म करने की सरकार की नीति के भी विरोध में हैं।
कोरोना काल की शुरुआत में केंद्र सरकार ने मंडियों में लिया जा रहा शुल्क समाप्त कर दिया था। राज्य सरकारों से खुद ही फैसला लेने को कहा था। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने मंडी में कारोबार पर ढाई फीसद शुल्क लेने की बात कही तो आढ़ती विरोध में आ गए। उद्योग व्यापार मंडल के आह्वान पर स्थानीय आढ़तियों ने इसके विरोध में एक दिन मंडी बंद रखी थी।
मैनपुरी के साथ ही समूचे प्रदेश में शुल्क के विरोध में हुए आंदोलन के बाद सरकार ने आधा फीसद विकास शुल्क और एक फीसद उत्पाद शुल्क बरकरार रखा। इसे लेकर भी नवीन मंडी के आढ़ती आंदोलन की राह पर है। बीते माह इसके खिलाफ मंडी निदेशक को ज्ञापन भी दे चुके हैं।
'डेढ़ फीसद शुल्क के विरोध में संगठन आज भी आंदोलन की राह पर है। सरकार का मंडी के बाहर कारोबार पर शुल्क नहीं लेने का फैसला गलत है। मंडी से इस शुल्क को हटाया जाए। मंडी में ही किसान को हर समय पांच-छह सौ आढ़ती एक साथ मिलते है, जो उनका माल खरीदते हैं। सरकार ऐसे कामों से आढ़तियों को समाप्त करना चाहती है।'उपदेश सिंह, अध्यक्ष फ्रूटग्रेन एसोसिएशन।
सरकार ने मंडी में कारोबार पर डेढ़ फीसद शुल्क का आदेश दिया है। इस पर अमल भी होने लगा है। विकास और मंडी की समस्याओं को दूर करने के लिए शुल्क भी आवश्यक है। एनके कोहली, मंडी सचिव।
'मंडी में कारोबार पर शुल्क से हमारा कोई सरोकार नहीं है। यह सरकार और आढ़ती का मामला है। हम तो केंद्र सरकार से न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी चाहते हैं, जिससे किसानों का माल सरकारी केंद्रों पर खरीदा जा सके।' वेदराम, किसान।