कुपोषण के केंद्र को पोषण की दरकार
जागरण संवाददाता, मैनपुरी : डेंजर जोन में जूझते बच्चों को सुरक्षित श्रेणी में लाने को योजनाएं
जागरण संवाददाता, मैनपुरी : डेंजर जोन में जूझते बच्चों को सुरक्षित श्रेणी में लाने को योजनाएं तो तमाम बनीं लेकिन व्यवस्थाएं परवान न चढ़ सकीं। हाल देखिए, कुपोषण से निजात को संचालित केंद्र को ही पोषण की दरकार है। जिम्मेदारों की लापरवाही से बच्चों को बेहतर उपचार नहीं मिल पा रहा है। कहीं आशाओं के स्तर से अनदेखी हो रही है तो कहीं अभिभावक ही बच्चों के इलाज को रुचि नहीं ले रहे हैं। जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या में कमी नहीं हो रही है। तमाम प्रयासों के बावजूद इनकी तादात बढ़ती ही जा रही है। लगातार कुपोषण के दंश से जूझ रहे बच्चों को डेंजर जोन से सुरक्षित श्रेणी में लाने के लिए एक जून 2015 में जिला चिकित्सालय परिसर में पोषण पुनर्वास केंद्र की स्थापना कराई गई थी। केंद्र खुलने के कुछ ही समय बाद प्रभारी डॉ. केशव ¨सह भदौरिया का तबादला हो गया। बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी यहां तैनात नौ स्टाफ के कंधों पर आ गई।
ढाई वर्षों में केंद्र में कुल मात्र 418 कुपोषित बच्चों को भर्ती कर उपचार दिलाया जा सका है। तमाम सुविधाओं के बावजूद जिम्मेदारों की लापरवाही से बच्चों को समुचित उपचार नहीं मिल पा रहा है। केंद्र तक बच्चों को लाने की जिम्मेदारी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और आशाओं की है। आशाओं के स्तर से जमकर अनदेखी की जा रही है। फील्ड से बच्चों को तलाश कर यहां भर्ती कराने में आशाओं द्वारा रुचि नहीं ली जा रही है।
ये है व्यवस्था
नियम के मुताबिक कुपोषित बच्चों को केंद्र में कम से कम 14 दिनों तक भर्ती कराना पड़ता है। प्रतिदिन यहां भर्ती बच्चों को दो वक्त का खाना, दूध व अन्य पोषक तत्व दिए जाते हैं। यदि बच्चा सात दिनों तक लगातार भर्ती रहता है तो प्रतिदिन 50 रुपये के हिसाब से प्रोत्साहन धनराशि लाभार्थी बच्चे के अभिभावक के खाते में भेजी जाती है। समय-समय पर बच्चों का फॉलोअप भी कराना जरूरी होता है। मौजूदा समय में यहां चार स्टाफ नर्स, एक पोषणदाता, एक रसोइया, एक केयरटेकर और एक स्वीपर की तैनाती है।
इनका कहना है
कुपोषित बच्चों की देखरेख के लिए केंद्र बना हुआ है। यहां चौबीस घंटे विशेषज्ञों द्वारा देखरेख कराई जाती है। लंबे समय से बाद अक्टूबर 2017 में डॉ. गौरव दुबे की तैनाती के बाद विशेषज्ञ चिकित्सक मिले हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और आरबीएस की टीम द्वारा सहयोग किया जा रहा है। यदि आशा कार्यकर्ता भी सहयोग करें तो कुपोषित बच्चों को बेहतर उपचार दिया जा सकता है। ज्यादातर अभिभावक भी अपने कुपोषित बच्चों के उपचार में आनाकानी करते हैं।
डॉ. आरके सागर, मुख्य चिकित्सा अधीक्षक, जिला चिकित्सालय।