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खुद खुश नहीं, दूसरों को कैसे रखेंगे खुश:प्रतिज्ञा माताजी

गुस्सा पर काबू पाने से जीवन में मिल सकती है हर खुशी प्रतिज्ञा माताजी शरीर नश्वर इसलिए हमेशा करते रहना चाहिए ईश्वर का गुणगान

By JagranEdited By: Published: Wed, 08 Sep 2021 06:30 AM (IST)Updated: Wed, 08 Sep 2021 06:30 AM (IST)
खुद खुश नहीं, दूसरों को कैसे रखेंगे खुश:प्रतिज्ञा माताजी
खुद खुश नहीं, दूसरों को कैसे रखेंगे खुश:प्रतिज्ञा माताजी

जासं, मैनपुरी: जीवन में खुद ही खुश नहीं रहोगे तो दूसरों को कैसे खुश पाओगे। गुस्सा पर काबू पाने से जीवन में हर समस्या का निदान किया जा सकता है। क्रोध से मनुष्य हानि उठाता है, इसलिए इस पर नियंत्रण करना भी जरूरी है।

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यह बात पत्रकारों से बात करते हुए प्रतिज्ञा माताजी ने कही। मंगलवार को शहर के मुहल्ला कटरा स्थित जिनालय में उन्होंने कहा कि हमारा शरीर नश्वर है, यह शरीर कभी भी नष्ट हो सकता है। क्यों ना हम ईश्वर का गुणगान करें और अपना जीवन आनंद में रखें आगे। उन्होंने कहा कि जियो और जीने दो का संदेश हमारा जैन धर्म देता है। जैन धर्म बहुत ही कठिन धर्मों में से एक है।

उन्होंने कहा कि जीवन में क्षमा, क्रोध, माया और लोभ पर संयम रखना जरूरी होता है, क्योंकि क्रोध से तो हानि ही होती है, इसलिए लोगों से प्यार से बोलना चाहिए और अपना- दूसरों का जीवन खुश रहना चाहिए। इस दौरान परीक्षा और प्रेक्षा माताजी ने भी कुछ सवालों के जवाब दिए। वार्ता के दौरान श्रवण कुमार जैन, पंडित कमल कुमार जैन, आदेश जैन, प्रमोद जैन, विकास जैन, विशाल जैन, पाली, गौरव जैन, राजीव जैन, गोल्डन जैन, आलोक जैन बाबी उपस्थित थे।

'धर्म आत्मा का स्वभाव, जिसे कभी नहीं खोया जा सकता'

जासं, मैनपुरी: मंगलवार को शहर के मुहल्ला कटरा स्थित अजितनाथ जिनालय में आचार्य प्रमुख सागर महाराज की शिष्या प्रतिज्ञा, परीक्षा और प्रेक्षा माताजी के सानिध्य में संगीमतय शांति धारा और अभिषेक पूजन कराया गया। प्रवचन के दौरान धर्म को आत्मा का स्वभाव बताया गया। भक्तामर विधान के 43वें दिन विधान करने का सौभाग्य राजेश कुमार शौर्य परिवार को मिला।

इस दौरान प्रतिज्ञा माताजी ने 43वें श्लोक का अर्थ बताया। उन्होंने कहा कि धर्म आत्मा का स्वभाव है, जिसे कभी खोया नहीं जा सकता। ज्यादा से ज्यादा भुला जा सकता है। जैसे आग अपनी गर्मी नहीं खो सकती, वैसे ही तुम अपने चेतन स्वभाव को नहीं खो सकते। धर्म एक को जानने पर जोर देता है और विज्ञान अनेक को जानने पर जोर देता है। विज्ञान अनेक को जानकर भी अज्ञानी बना रहता है और धर्म एक आत्मा को जानकर भी ज्ञानी हो जाता है। सायंकालीन गुरु भक्ति और आरती भक्तामर महा दीप अर्चना विधान कराया गया, जिसमें समाज के सभी लोगों ने दीप अर्ध समर्पित किए।

कार्यक्रम में प्रमुख सागर युवा मंच, सचि महिला मंडल, पुष्प प्रमुख चातुर्मास समिति का सहयोग रहा। संचालन पंडित कमल जैन ने किया।


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