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मैं अपनी बदहाली से जंग लड़ता रहूंगा..

श्यामकिशोर यादव, दन्नाहार (मैनपुरी): दन्नाहार विकास खंड के नगला भूपाल में जनसुविधाओं का अभाव है। करीब पांच सौ साल पुराने इस गांव में आज भी लोग कच्चे मकानों में ही रह रहे हैँ। गांव के लिए कोई संपर्क मार्ग नहीं है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 22 May 2018 10:47 PM (IST)Updated: Tue, 22 May 2018 10:47 PM (IST)
मैं अपनी बदहाली से जंग लड़ता रहूंगा..
मैं अपनी बदहाली से जंग लड़ता रहूंगा..

श्यामकिशोर यादव, दन्नाहार (मैनपुरी): विकास की राह देखते-देखते मेरी आंखें अब बूढ़ी हो चली हैं। फिर भी मैं इसी उम्मीद में ¨जदा हूं कि एक न एक दिन मेरे दिन बहुरेंगे। कोई तो ऐसा होगा, जिसे मेरा दर्द दिखाई देगा। इसी उम्मीद में मैं पांच सौ सालों से ¨जदा हूं। सैकड़ों सालों के इस सफर में कई बार मुझे अपने आप पर रोना आया तो कई बार मैंने हिम्मत हारी। लेकिन फिर अपने आप को बटोरकर इसी उम्मीद में हूं कि आज नहीं तो कल मेरा दर्द जरूर कम होगा।

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मैं आपको ये तो बताना भूल ही गया मैं कौन हूं। मैं ग्राम पंचायत नौनेर का नगला भूपाल हूं। मेरी बारे में बताने के लिए मैं आपको पांच सौ साल पीछे लिए चलता है। क्योंकि तभी कुछ लोगों ने मेरी नींव रखी थी। बाहर से आए आधा दर्जन परिवारों ने यहां अपना आशियाना बनाया था। मैं भी अपनी किस्मत पर फूला नहीं समाता था। क्योंकि लोगों की बसाहट से मेरा आंगन गुलजार हो गया था। सब कुछ ठीक चल रहा था। आजादी की लड़ाई को भी मैंने अपनी आंखों से देखा। जब देश आजाद हुआ तो मैंने भी लोगों के साथ जश्न मनाया। क्योंकि मैं जानता था कि देश आजाद हो गया है और अब मैं भी एक आजाद गांव हूं। इसके कुछ दिनों बाद ही गांवों की तस्वीर बदलने का काम शुरू हो गया। मुझे ये विश्वास था कि विकास की गंगा देर से ही सही पर मेरी प्यास बुझाने जरूर आएगी। पेड़ों की ऊंची-ऊंची डालियों से दूर गांवों में हो रहे विकास को निहारता रहता। लेकिन अचानक विकास का मेरा सपना कहीं टूटकर बिखर गया। विकास के कार्यों से मुझे ऐसे अलग कर दिया जैसे कि मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है। मेरी गोद में रहने वाले लोगों को भी जब इस बात का अहसास हुआ तो उन्होंने अपनी किस्मत के साथ ही मेरी किस्मत को भी कोसना शुरू कर दिया। ये सिलसिला पिछले 70 सालों से चल रहा है। मेरे पास आने वाले लोगों का पैर जब खेतों की मेड़ पर इधर-उधर फिसलता है तो वे मुझे खूब बुरा-भला कहते हैं। लेकिन मैं उन्हें कुछ नहीं कह सकता, क्योंकि मेरी बदहाली मुझे इसकी इजाजत नहीं देती। हां एक बार जरूर है कि अपनी इस हालत के लिए मैं बिल्कुल भी जिम्मेदार नहीं हूं। इसके लिए सरकार जिम्मेदार है।

तकरीबन आधा किलोमीटर दूर स्थित मैनपुरी-शिकोहाबाद हाइवे पर जब वाहनों को फर्राटा भरते हुए देखता हूं तो बस यही सोचता हूं कि आखिर मेरा कसूर क्या था जो मुझ तक आना वाला हर रास्ता बंद कर दिया गया। मैं सभी लोगों से केवल एक ही सवाल पूछना चाहता हूं कि जब मैंने कभी किसी के साथ अन्याय नहीं किया तो आखिर मेरे साथ ये घोर अन्याय क्यों। इतना सब होने के बाद भी किसी को मुझ पर तरस नहीं आ रहा है। इंतजार में अब मैं बूढ़ा जरूर हो गया है। लेकिन फिर मैं भी अपने आप को बिखरने नहीं दूंगा। मुझे उम्मीद है कि कोई न कोई मेरे दर्द को कम करने के लिए प्रयास जरूर करेगा। फिर इसके लिए मुझे चाहे पांच सौ सालों तक और इंतजार क्यों न करना पड़ा, मैं इसके लिए भी तैयार हूं। आखिर सांस तक मैं अपनी बदहाली से जंग लड़ता रहूंगा।


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