धान की रोपाई को खाली कर रहे धरती की कोख
बारिश न होने से जमीन के अंदर के पानी का हो रहा अत्यधिक दोहन कृषि वैज्ञानिक कम पानी फसलों की बुबाई करने की दे रहे सलाह।
मैनपुरी, श्रवण शर्मा। यह अजीब संयोग है कि जिस भूजल को सहेजने के लिए सरकार प्रयासरत है। खेती के लिए उसी नीर को धरती की कोख से खींचा जा रहा है। कसूर किसानों का भी नहीं, उन्हें धान की रोपाई करनी है। बारिश हो नहीं रही और तालाब सूखे पड़े हैं। ऐसे में कृषि वैज्ञानिक धान के बजाय कम पानी फसलों की बुबाई करने की सलाह दे रहे हैं।
मानसून जिले के किसानों से रूठा सा दिखाई दे रहा है। इस बार जून में चार साल बाद सबसे कम 24.13 मिमी बारिश हुई। बीते वर्ष बारिश का आंकड़ा 26.05 मिमी दर्ज किया गया था। जून में इस बार मैनपुरी में सबसे कम 16 मिमी और भोगांव तहसील में 35 मिमी बारिश हुई। जुलाई में अभी तक सिर्फ 121 मिमी ही बारिश हो सकी।
लंबे समय तक बारिश के इंतजार के बाद जिले के कुछ क्षेत्रों में किसानों ने निजी साधनों से धान रोपाई का काम शुरू कर दिया है। एक हैक्टेयर धान की रोपाई में ही लगभग 10 लाख लीटर पानी लग जाता है। जिले में 63.5 हजार हैक्टेयर में रोपाई हो रही है। कितना पानी लगेगा, सहज ही अंदाजा लग सकता है। जून में शुरू होती है बुबाई
खरीफ फसलों की बुबाई का समय 25 जून से शुरू हो जाता है। बाजरा की बुबाई 15 जुलाई के बाद शुरू होती है। समय से बोई गई फसलों को वृद्धि के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है और पैदावार ठीक होती है। इसलिए किसान मानसून का इंतजार किए बिना बुबाई कर रहे हैं। दलहनी फसलों पर दें ध्यान
कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि जब मानसून देरी से आए तो किसानों को खरीफ में ज्वार, बाजरा, मूंग, उड़द, अरहर, मूंगफली की खेती के लिए तैयार रहना चाहिए। कभी-कभार मानसून देर से आता है और शीघ्र चला जाता है। ऐसी स्थिति में किसान रबी में गेहूं का रकबा घटाने पर विचार करें तो कोई परेशानी नहीं होगी। किसानों को चाहिए कि कम पानी वाली फसलों का क्षेत्रफल बढ़ाएं। जिससे आने वाली नस्लों के लिए भूगर्भ जल को सुरक्षित रखा जा सके।
डीवी सिंह, उप निदेशक कृषि।