..और जवाब दे गई 108 एंबुलेंस सेवा
जिले की 108 एंबुलेंस सेवा खुद बीमार है। स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी देखिए, धक्कामार हो चुकीं एंबुलेंसों के बूते ही मरीजों की जीवनडोर छोड़ दी गई है। सोमवार को मरीज की ¨जदगी उस वक्त खतरे में पड़ गई जब रवानगी से पहले से ही एंबुलेंस खराब हो गई। तमाम प्रयासों के बाद धक्का मारकर उसे रवाना कराया गया। बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का खोखला दावा सोमवार को चर्चा में रहा। बेवर थाना क्षेत्र के गांव करपिया निवासी आशीष मिश्रा पुत्र रामविलास मिश्रा की तबियत बिगड़ने पर जिला अस्पताल की इमरजेंसी से सैफई रेफर कर दिया गया। फोन पर 108 एंबुलेंस संख्या यूपी 41 जी 0500 मौके पर पहुंची। मरीज को उसमें लिटा परिजन सवार हो लिए। इससे पहले कि मरीज को ले जाया जाता, एंबुलेंस का इंजन बंद पड़ गया।
जासं, मैनपुरी : जिले की 108 एंबुलेंस सेवा खुद बीमार है। स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी देखिए, धक्कामार हो चुकीं एंबुलेंसों के बूते ही मरीजों की जीवनडोर छोड़ दी गई है।
सोमवार को मरीज की ¨जदगी उस वक्त खतरे में पड़ गई जब रवानगी से पहले से ही एंबुलेंस खराब हो गई। तमाम प्रयासों के बाद धक्का मारकर उसे रवाना कराया गया। बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का खोखला दावा सोमवार को चर्चा में रहा। बेवर थाना क्षेत्र के गांव करपिया निवासी आशीष मिश्रा पुत्र रामविलास मिश्रा की तबियत बिगड़ने पर जिला अस्पताल की इमरजेंसी से सैफई रेफर कर दिया गया। फोन पर 108 एंबुलेंस संख्या यूपी 41 जी 0500 मौके पर पहुंची। मरीज को उसमें लिटा परिजन सवार हो लिए। इससे पहले कि मरीज को ले जाया जाता, एंबुलेंस का इंजन बंद पड़ गया। चालक ने दूसरे चालकों के साथ भरसक प्रयास किए लेकिन काम नहीं बना। लगभग 25 मिनट के बाद इमरजेंसी के बाहर दूसरे लोगों की मदद से एंबुलेंस को धक्का मारकर चालू कराया गया। इस बीच मरीज की स्थिति भी बिगड़ती रही। तो इसलिए निजी एंबुलेंसों से जाते हैं मरीज
जिला अस्पताल की इमरजेंसी से रोजाना लगभग आधा दर्जन मरीजों को सैफई रेफर किया जाता है। सभी के तीमारदारों से चिकित्सक 108 एंबुलेंस सेवा को फोन करने के लिए कहते हैं। लेकिन, स्थिति खराब है। फोन करने के बाद एंबुलेंस को मौके पर पहुंचने में काफी समय लग जाता है। ऐसे में मरीज की ¨जदगी बचाने के लिए तीमारदार प्राइवेट एंबुलेंसों से मरीजों को दूसरे अस्पतालों के लिए ले जाते हैं। ये है व्यवस्था
जिले में 16 एंबुलेंसों का संचालन हो रहा है। तीमारदार द्वारा फोन करते ही लखनऊ स्थित कंट्रोल रूम में पूछताछ कर चिकित्सक से सत्यापन कराया जाता है। बाद में कांफ्रेंस पर रखकर तीमारदार की नजदीक स्थित एंबुलेंस के चालक से बात कराई जाती है। बात करने से लेकर एंबुलेंस के आने तक लगभग 20 मिनट से आधा घंटा तक का समय लग जाता है। सभी 108 एंबुलेंसों की फिटनेस की जांच करा उनमें तकनीकी खामी को दूर कराया जाएगा। विशेष कैंप लगाकर समस्या दूर कराने के प्रयास किए जाएंगे। चालकों को भी निर्देश दिए गए हैं कि वे मरीजों को ले जाने से पहले अपनी एंबुलेंसों की जांच कर लें।
डॉ. एके पांडेय, सीएमओ, मैनपुरी।