आक्सीजन की कमी नहीं, भय के भूत ने डराया
जागरण संवाददाता महोबा जिले में कोरोना के मामले इस साल मई माह में पंचायत चुनाव के बाद अचा
जागरण संवाददाता, महोबा : जिले में कोरोना के मामले इस साल मई माह में पंचायत चुनाव के बाद अचानक बढ़ने लगे थे। पहले दस मरीज मिले फिर तीस अचानक दस दिन के अंदर यह संख्या 200 पार कर चुकी थी। दूसरे जिलों के हालात से सबक लेते हुए जिला प्रशासन ने 60 सिलिडर के स्टाक को बीस दिन में ही बढ़ाकर 300 कर दिया। माह होते-होते यह संख्या 500 पहुंचा। यही कारण था कि जिले में मरीजों का आंकड़ा 1200 के करीब पहुंच जाने के बाद भी मौत का आंकड़ा 73 था और इसमें भी आक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं होने पाई।
जिले में पिछले साल कोरोना से करीब 13 मौत हुई थीं। इस साल 73 मौतें हुईं। वहीं दोनों बार की संख्या को मिलाकर चार हजार से अधिक संक्रमितों की संख्या पहुंच गई। इसके बाद भी रिकवरी दर अधिक होने से यहां महामारी का प्रभाव कम ही रहा। भुलाए नहीं भूलता वह दर्द :
अचर्ना त्रिवेदी का निधन भी कोरोना के कारण हुआ था। इनके पति अरविद त्रिवेदी का कहना है कि परिवार पूरी खुशहाली से चल रहा था अचानक इस घटना ने पूरी जिदगी के लिए न भूलने वाला दर्द दे दिया। रिवई के रघुराज सिंह चौहान की भी मौत कोरोना संक्रमण से हो गई थी। इनके पुत्र राजू सिंह कहते हैं कि इलाज को लेकर काफी प्रयास हुए लेकिन बचाया नहीं जा सका। शिक्षिका मालती विश्वकर्मा का भी कोरोना से निधन हुआ था। उनके पुत्र कहते हैं कि पहले मां सही हो गई थीं लेकिन अचानक दोबारा तबीयत बिगड़ी फिर बचाया नहीं जा सका। क्या कहते हैं डाक्टर :
कबरई स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सक डॉ. महेंद्र कुमार का कहना है कि कोरोना संक्रमित ऐसे लोग जो घरों में क्वारंटाइन थे वह जल्द रिकवर हुए थे। उन्हें आक्सीजन की भी जरूरत नहीं पड़ी। ध्यान रखें की 98 से अधिक तापमान नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही विटामिन सी की गोली खाने की सलाह दी जाती थी।
डा. योगेंद्र सिंह रजावत कहते हैं कि आक्सीजन सपोर्ट है इलाज नहीं। लंग्स तक आक्सीजन पहुंचती है और इलाज भी होता रहता है। सभी को आक्सीजन देनी जरूरी नहीं होता। जब आक्सीजन लेबल 94 से नीचे जाता है तब इसकी जरूरत पड़ती है। उस दौरान बहुत से लोग अनावश्यक आक्सीजन की कमी को लेकर भयभीत थे।