'सफेद सोना' के लिए छलनी कर रहे नदियों का सीना
जागरण संवाददाता, महोबा : प्रकृति से छेड़छाड़ मानव के लिए अभिशाप माना जाता है। चंद रुपयों के लिए लोग उस
जागरण संवाददाता, महोबा : प्रकृति से छेड़छाड़ मानव के लिए अभिशाप माना जाता है। चंद रुपयों के लिए लोग उसके दोहन से बाज नही आते। परिणाम यह होता है कि हम उसकी विभीषिका झेलते हैं। बाढ़ के रूप में, प्रचंड गर्मी के रूप में। चक्रवात के रूप में व भारी बर्फबारी के रूप में। अब तो पेयजल संकट से भी हम जूझ रहे हैं लेकिन चेत नही रहे। यदि गंभीर होते तो सफेद सोना यानी बालू के लिए नदियों का पानी न रोकते। जगह-जगह बांध बना उसका सीना छलनी न करते। जी हां, बुंदेलखंड के महोबा में प्रकृति प्रदत्त नदियां अर्थात वर्मा, ककरयाऊ, अर्जुन, क्योलारी आदि नदियां आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही हैं ..और 'सौदागर' नदियों का सीना छलनी करने से बाज नही आ रहे। बारंबार शिकायत के बाद स्थानीय प्रशासन के अलंबरदार उदासीन हैं।
वर्मा, अर्जुन, ककरयाऊ व क्योलारी नदियों को सदानीरा कहा जाता है। खेतों की सिंचाई के लिए जहां इनके पानी का उपयोग किया जाता है वहीं पेयजल की व्यवस्था भी इन्हीं से की जाती है। लेकिन, कुछ रुपयों के लालच में आकर स्थानीय माफिया इनके अस्तित्व को मिटाने पर अमादा हैं। इन नदियों से बालू निकालने का काम खूब हो रहा है। इसे रोकने वाला कोई नही है। जबकि खनन मामले में शासन ने सख्त निर्देश दे रखे हैं।
यहां हो रहा अवैध खनन, कहां है प्रशासन
जिले के पनवाड़ी थाना क्षेत्र के छतेसर घाट में खनन माफिया के द्वारा अवैध खनन कराया जा रहा है। इसके साथ ही श्रीनगर थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले डिगरिया, कैमाहा घाट में भी यही तस्वीर निगाहों में दिख रही है। खनन माफियाओं के बालू लदे वाहन आम रास्तों और खेतों को रौंद रहे हैं। ग्रामीणों के विरोध और शिकायत के बाद भी प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा है। चर्चा है कि हर घाट में हो रहे इस खनन के अवैध कारोबार में नेता जी के दस्तखत नजर आ रहे हैं। सत्ता की हनक के आगे प्रशासन कार्रवाई करने की बजाए अपने हाथ पीछे खींच रहा है।
मैनेजमेंट से चलता है पूरा खेल
चर्चा है कि खनन का यह खेल पूरी तरह मैनेजमेंट से चल रहा है। जिनको कार्रवाई करनी है उनके ही कुछ जिम्मेदार माफिया को संरक्षण देने में लगे हुए हैं। शायद यहीं कारण है कि दिनों नहीं बल्कि सालों से यह अवैध खनन का खेल चल रहा है। प्रदेश सरकार ने अवैध खनन कहीं न होने देने का दावा किया है और प्रशासन भी जुबां पर यह शब्द लाता है पर धरातल पर यह कार्रवाई क्यों नहीं हो पाती यह समझ से परे है। सवाल है कि आखिर अवैध खनन का खेल कब बंद होगा।
जल संजीवनी मुहैया कराने वाली नदियां खुद प्यासी
प्रकृति ने महोबा को नदियों का वरदान दिया। लेकिन वर्ष 2005 में पड़े सूखे के बाद नदियां सूखी तो इस ओर किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। मानसून की बेरुखी के साथ ही जिला प्रशासन की इन्हें फिर से जीवंत करने की कोई पहल नहीं हुई। घाटों में सफेद सोना बालू नजर आया तो माफिया ने नदी के घाटों पर कब्जा कर लिया। अवैध खनन कराया जाने लगा। नतीजा सबके सामने है, जो नदियां कभी हजारों लोगों को जल संजीवनी उपलब्ध कराती थी, आज वे खुद प्यासी हैं।
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'अवैध खनन को लेकर लगातार कार्रवाई की जा रही है। किसी भी सूरत में अवैध खनन नहीं होने दिया जाएगा।'
- अंजनी कुमार, जिला खनिज अधिकारी।