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विदेश में काफी तेजी से महक रही बुंदेलखंड की तुलसी, आधा दर्जन गांवों का जीवन बदला

पानी का काफी अभाव झेलने वाले बुंदेलखंड की तुलसी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया व कनाडा में जलवा बिखेर रही है। यहां पर इसका रकबा करीब छह सौ एकड़ तक फैल चुका है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Thu, 17 May 2018 02:12 PM (IST)Updated: Fri, 18 May 2018 07:36 AM (IST)
विदेश में काफी तेजी से महक रही बुंदेलखंड की तुलसी, आधा दर्जन गांवों का जीवन बदला
विदेश में काफी तेजी से महक रही बुंदेलखंड की तुलसी, आधा दर्जन गांवों का जीवन बदला

महोबा [अजय दीक्षित]। भारत के घर तथा आंगन में अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज कराने वाली बुंदेलखंड की तुलसी ने अब विदेश तक अपना विस्तार कर लिया है। पानी का काफी अभाव झेलने वाले बुंदेलखंड की तुलसी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया व कनाडा में जलवा बिखेर रही है। यहां पर इसका रकबा करीब छह सौ एकड़ तक फैल चुका है।

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घरों-घर पूजी जाने वाली तुलसी अब घर-आंगन में ही नहीं, यहां पर सूखे बुंदेलखंड के बेजान खेतों में भी नजर आ रही है। इससे गरीब किसानों के जीवन की बगिया महक उठी है। सूबे के महोबा जिले के आधा दर्जन गांवों का जीवन तुलसी ने बदल दिया है। सूखे की मार झेलते आए किसानों की उत्पादित तुलसी की मांग अब विदेश तक में है।

बदल रहा बुंदेलखंड

यह बदलाव डेढ़ दशक में सामने आया है। करीब 50 किसानों ने तुलसी के उत्पादन की शुरुआत की थी। अब इलाके के अनेक किसान तुलसी उगा रहे हैं। पत्ती से लेकर बीज और डंठल तक, सब कुछ बिक रहा है। महोबा में तुलसी की खेती की शुरुआत डॉ. विश्वभान ने की थी। पहले वह इसकी पत्ती, डंठल और बीज स्वयं दूसरे शहरों में बेचने जाते थे। धीरे-धीरे अन्य किसान भी तुलसी की खेती करने लगे। दादरी के किसान ध्वजपाल सिंह ने करीब 13 वर्ष पहले खेतों में तुलसी का बीज तैयार किया था। तब पांच एकड़ में पौध लगाई थी। अब बड़े पैमाने पर तुलसी का उत्पादन कर रहे हैं। चरखारी, नौगांव, सिजहरी, शाहपहाड़ी और ब्यारजो जैसे गांवों में भी किसानों ने तुलसी की खेती को अपनाया है।

मिला विदेशी बाजार

यहां उत्पादित तुलसी के बीज, डंठल और पत्ती जैसे उत्पादों को विदेशी बाजार भी मिल गया है। आर्गेनिक इंडिया के सहयोग से थोक व्यापारी और संस्थाएं सीधे खेतों से माल उठाने लगे हैं। इनके जरिये देश के बड़े शहरों के साथ ही अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों में इन उत्पादों को भेजा जा रहा है। कनाडा व अमेरिका में दादरी टी ब्रांड के नाम से तुलसी चाय बिक रही है।

तीन गुना मुनाफा

चरखारी के रायनपुर में विमला कुशवाहा व नटर्रा गांव के रामकिशोर मिश्र तुलसी की खेती कर रहे हैं। स्प्रिंकलर सेट से सिंचाई करते हैं। उन्होंने बताया कि छह बीघा में तुलसी की खेती करने में तीस हजार रुपये की लागत आती है और 90 हजार रुपये की बचत हो जाती है। तुलसी की पौध के बाद गेहूं आराम से उगा सकते हैं। यहां के किसान तुलसी के पत्तों से तेल निकालने या केवल तेल निर्माताओं को पत्तियां बेचने तक सीमित नहीं है बल्कि वे हर फसल के सभी उत्पादों को बेच रहे हैं।

पत्ती, डंठल और बीज के दाम

तुलसी की पत्ती 900 रुपये क्विंटल में बिक रही है। इसके डंठल का दाम 500 रुपये क्विंटल तक है। अगली फसल के लिए जमा करने के भी बीज बच जाते हैं, जिन्हें किसान बेच देते हैं। तुलसी के पत्तों से निकला तेल दवा और अन्य खाद्य उत्पाद बनाने में इस्तेमाल होता है, वहीं इसका डंठल भी दवा और माला आदि बनाने में इस्तेमाल होता है। उद्यान अधिकारी बलदेव प्रसाद ने बताया कि अमेरिकी वैज्ञानिकों का दल भी यहां का दौरा कर चुका है। उन्होंने किसानों को तुलसी से जुड़ी अहम जानकारियां दीं।

दोगुना हुआ रकबा

पहले जहां करीब तीन सौ एकड़ में तुलसी की खेती हो रही थी। अब यह रकबा छह सौ एकड़ में फैल चुका है। प्रत्येक फसल के बाद अगली फसल के लिए किसान इसके बीज जमा करते चलते हैं। जून-जुलाई में तुलसी की पौध तैयार की जाती है। 


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