फाइलों में दबा फरमान, खतरे में बेटियों की जान
सुरेंद्र कुमार अग्रवाल कुलपहाड़ (महोबा) हर दीवार में दरार दिख रही हैं ईंटें बाहर
सुरेंद्र कुमार अग्रवाल, कुलपहाड़ (महोबा)
हर दीवार में दरार दिख रही हैं, ईंटें बाहर निकल आने को बेताब तो छत की सरिया ऐसे झांक रहीं हैं कि अब गिरीं कि कब। वैसे स्कूल में बालिकाएं न के बराबर पहुंच रही हैं लेकिन स्टाफ और जो छात्राएं आ रही हैं उनकी जान को तो खतरा हर समय बना ही रहता है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ नारे के बीच तहसील मुख्यालय स्थित राजकीय बालिका इंटर कॉलेज (जीजीआइसी) की छात्राएं फिलहाल दहशत में रहते हुए यहां शिक्षा लेने को मजबूर हैं। जीर्ण-शीर्ण भवन कभी भी हादसे का कारण बन सकता है। कंडम घोषित हो चुका भवन
महाराजा छत्रसाल व उनके बेटों ने अपने शासनकाल में बड़ा तालाब सरोवर के पीछे अनूठी रिहायशगाह का निर्माण कराया था। राजशाही समाप्त होने के बाद इसे शासन ने अपने अधिकार में ले लिया। 1972 से 93 तक यहां तहसील कार्यालय का संचालन हुआ। एसडीएम का कार्यालय व आवास भी इसी परिसर में था। तकरीबन 25 साल पहले इस भवन को कंडम घोषित कर तहसील को स्थानांतरित कर दिया गया। 1993 से 1998 तक यह पूरी तरह वीरान पड़ा रहा। इसके बाद यहां बालिका इंटर कालेज की अनुमति दे दी गई। पुराने भवन को किया साफ
जर्जर भवन को ही झाड़-पोंछ कर स्कूल के लिए तैयार कर दिया गया। वर्तमान में यह पूरी तरह जर्जर हो चुका है। कब बड़ा हादसा हो जाए ये कहा नहीं जा सकता । दीवारों का और छत का प्लास्टर गिरता रहता है। ईंट चुन चुकी हैं। घट गई छात्राओं की संख्या
कॉलेज खुलने के बाद पांच सालों में छात्राओं की संख्या 500 पार कर गई थी। कुछ सालों तक हालात सामान्य रहे। अभिभावकों का ध्यान जब जीर्ण-शीर्ण इमारत पर गया तो उन्होंने बच्चियों के प्रवेश बंद करवा दिया। वर्तमान में यहां सिर्फ 150 छात्राएं ही हैं। इसमें से औसतन 100 छात्राएं ही स्कूल पहुंचतीं हैं। राजकीय बालिका इंटर कॉलेज शिक्षा के नाम पर छलावा है। पैरवी के बाद भूमि मुहैया करा दी गई है, पर शासन भवन के निर्माण के लिए किसी भी योजना से फंड उपलब्ध नहीं करा पा रहा है।
राधेलाल यादव, शिक्षाविद् एवं अध्यक्ष कुलपहाड़ विकास मंच। जिस भवन में गोशाला भी नहीं चलनी चाहिए वहां पाठशाला संचालित की जा रही है। यह अपराध है, जो शासन और प्रशासन की देखरेख में किया जा रहा है।
मोहम्मद शाकिर, पूर्व अध्यक्ष, बार एसोसिएशन कुलपहाड़। शासन-प्रशासन ने स्कूलों की मान्यता के लिए ढेरों मानक बनाएं। मानक का चाबुक केवल निजी स्कूलों पर चलता है। सरकार द्वारा वित्त पोषित व संचालित यह कॉलेज एक भी मानक पूरा नहीं कर रहा है।
डॉ. लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, पूर्व प्राचार्य ब्रह्मानंद महाविद्यालय राठ मैंने विद्यालय का निरीक्षण किया है। हालात बहुत ही दयनीय हैं। मुझसे पहले अधिकारियों और मैंने भी शासन को अवगत कराते हुए नए भवन का प्रस्ताव भेजा है। स्वीकृति मिलने के बाद ही कुछ किया जा सकता है।
सुरेश प्रताप सिंह, जिला विद्यालय निरीक्षक।