हाथों के हुनर से बहनों की तकदीर लिख रहीं 'दीदी'
सुरेंद्र अग्रवाल, कुलपहाड़ (महोबा) : हाथों में हुनर पहले से था। एकाकीपन ने परेशान किया ता
सुरेंद्र अग्रवाल, कुलपहाड़ (महोबा) : हाथों में हुनर पहले से था। एकाकीपन ने परेशान किया तो कुछ कर गुजरने की ठानी। परंपराओं के बंधन में रहते हुए कुछ महिलाओं को अपने साथ जोड़ा। परिणाम सार्थक मिले तो स्वावलंबन की शुरुआत हुई। हौसले को उड़ान दी और महिला सिलाई-कढ़ाई कला समिति केंद्र स्थापित किया। अब इसी के सहारे बहनों की तकदीर लिख रही हैं।
महिलाओं में दीदी के रूप में जानी जाने वाली यह महिला हैं कुलपहाड़ निवासी मैमूना खातून। शादी के बाद मैमूना को घर में अकेला रहना भाता नहीं था। ऐसे में पड़ोस की कुछ लड़कियों और महिलाओं को घर पर बुलाकर निश्शुल्क सिलाई-कढ़ाई सिखाने लगीं। 1994 मे घर पर ही सिलाई कढ़ाई केंद्र खोला। खर्च निकलता रहे इसलिए बाजार से ऑर्डर भी लेती रहीं । वह बताती हैं कि 6 माह के प्रशिक्षण में शुरूआती एक पखवाड़ा कागज से कटिंग सिखाई जाती है। इसके बाद कपड़ा दिया जाता है जो पूरी तरह निश्शुल्क है। यहां प्रशिक्षण पाने वाली तमाम महिलाएं ऐसी हैं जो इसी हुनर से अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हैं।
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फोटो संख्या 2:
कम उम्र में ही शादी हो गई थी। कुछ वर्ष बाद ही पति का निधन हो गया। जीविका का कोई रास्ता ही नहीं सूझ रहा था। मैमूना दीदी ने सहारा दिया। धीरे-धीरे काम मिलने लगा। इसी से घर खर्च चल रहा है। अब और लोगों को सिलाई सिखाती हूं।
- गीता जाटव फोटो संख्या 3:-
पति का निधन होने के बाद सारी जिम्मेदारी सर पर आ गई। दीदी से प्रेरित हो 14 साल पहले सिलाई-कढ़ाई सीखी और उसी से परिवार पाल रहूं हूं। प्रतिमाह दो से ढाई हजार रुपये कमाई हो जाती है। बेटियों को भी सिलाई सिखा दी है।
-बेबी
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फोटो संख्या 4:
बड़ी बहन से प्रेरणा लेकर सिलाई सीखी। स्नातक की पढ़ाई भी चल रही है। हर माह तीन से चार हजार रुपये कमाई हो जाती है। सिलाई की बदौलत ही किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता। तीन साल हो गए अपना खर्च खुद ही निकाल रही हूं।
-रूही