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चौहान सेना को धूल चटा फहराई थी विजय पताका

जागरण संवाददाता, महोबा : बुंदेलखंड के महोबा जिले में लगने वाला कजली महोत्सव महज मेला नहीं बि

By JagranEdited By: Published: Sun, 26 Aug 2018 11:16 PM (IST)Updated: Sun, 26 Aug 2018 11:16 PM (IST)
चौहान सेना को धूल चटा फहराई थी विजय पताका
चौहान सेना को धूल चटा फहराई थी विजय पताका

जागरण संवाददाता, महोबा : बुंदेलखंड के महोबा जिले में लगने वाला कजली महोत्सव महज मेला नहीं बल्कि यहां के शौर्य एवं वीरता का प्रतीक है। बड़े लड़ईया महुबे वाले, जिनसे हार गई तलवार..चंदेल शासनकाल से लेकर आज तक यह पंक्ति सावन मास लगते ही लोगों की जुबां पर आ जाती है। यह वही वीर भूमि है जहां 836 वर्ष पूर्व कीरतसागर के तट पर हुए भुजरियों के युद्ध में चौहान सेना को चंदेल रणबांकुरों ने धूल चटाई थी। तब से आज तक मेले का आयोजन विजयोत्सव के रूप में होता है।

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चंदेलशासन काल में महोबा की रियासत में सेनापति रहे आल्हा और ऊदल को उरई के राजा मामा माहिल के कहने पर राजा परमालिदेव ने निष्कासित कर दिया था। इसकी भनक लगने पर दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान ने महोबा पर ठीक रक्षाबंधन के दिन चढ़ाई कर दी और महोबा को चारों ओर से घेर लिया था। इस दिन चंदेल शासक परमालिदेव की बेटी राजकुमारी चंद्रावल अपनी सखियों के साथ कीरतसागर सरोवर में कजलियां विसर्जित करने जा रही थी। आल्हा सम्राट मुख्यालय के वंशगोपाल यादव बताते हैं कि दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान ने युद्ध को रोकने के लिए राजा परमालिदेव से बेटी चंद्रावल, पारस पथरी और नौलखा हार की मांग की थी लेकिन राजा परमाल को यह स्वीकार नहीं था। रक्षाबंधन के दिन चौहान व चंदेल सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ जिसे भुजरियों का युद्ध कहा जाता है। राजकुमारी चंद्रावल भी अपनी सखियों के साथ युद्ध में तलवार लेकर कूद पड़ीं। उधर निष्कासन के बावजूद युद्ध की भनक लगते ही आल्हा ऊदल भी साधु वेश में महोबा आए और चौहान सेना का डटकर सामना किया। अंत में आल्हा ऊदल और राजकुमारी चंद्रावल सहित अन्य रणबांकुरों ने पृथ्वीराज चौहान की सेना पर फतह हासिल की। रक्षाबंधन के दिन हो रहे युद्ध के कारण यहां दूसरे दिन राखी मनाई जाती है। इसी युद्ध में विजय के बाद युद्ध के साक्षी कीरतसागर तट पर विजयोत्सव के रूप में कजली मेला लगता है।

कजली मेले में ये होंगे कार्यक्रम

आगामी 27 अगस्त से शुरू हो रहे कजली महोत्सव में सांस्कृतिक संध्या के तहत होने वाले कार्यक्रमों की रूपरेखा पूरी कर ली गई है। 27 अगस्त को आल्हा गायन व बुंदेली लोकगीत राई नृत्य, 28 को आल्हा गायन के साथ ही बृज की होली होगी, 29 को लोकगीत अचरी, जवारा व भजन संध्या, 30 को दिवारी नृत्य व कवि सम्मेलन, 31 को आल्हा गायन, भोजपुरी रागिनी, 1 सितंबर को लोकनृत्य, लोकगीत व संगीत संध्या के साथ ही अंतिम दिन 2 सितंबर को बॉलीवुड नाइट के साथ ही कजली महोत्सव का समापन होगा।


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