अस्पताल के कचरे से प्रदूषण की समस्या
सड़कों पर इधर-उधर फेंक दिया जा रहा कचरा जिले में हैं सरकारी 53 यूनिट जबकि प्राइवेट 59 अस्पताल
महराजगंज:
अस्पताल के कचरे के निस्तारण की व्यवस्था ठीक न होने से प्रदूषण की समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है। क्षेत्र के अधिकतर सरकारी व निजी अस्पतालों से रोजाना निकलने वाला संक्रमित कचरा खाली जगहों या फिर सड़क के किनारे फेंक दिया जा रहा है। बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट एवं हैंडलिग कानून अस्पताल, नर्सिंग होम, क्लीनिक, डिस्पेंसरी, पशु संस्थान, पैथालाजिक लैब, ब्लड बैंक पर लागू होता है। जिले में पीएचसी, सीएचसी, न्यू उपकेंद्र, जिला अस्पताल सहित सरकारी 53 यूनिट है। जबकि प्राइवेट अस्पताल आदि 59 हैं। विभाग को दावा है कि बिना पर्यावरण कंट्रोल बोर्ड की एनओसी के अस्पतालों का नवीनीकरण नहीं किया जाता है। लेकिन सच यह है कि इन अस्पतालों में व्यवस्था होने के बाद भी कचरों को सड़कों पर फेंक दिया जा रहा है। सबसे अधिक समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। इधर उधर फेंका गया अस्पताल का कचरा हवा के साथ फैल जाता है। वहीं पानी के साथ रिसकर भूमि के अंदर दब जाता है।
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बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के तहत जिला अस्पताल में निर्धारित रंगों के हिसाब से कूड़ादान रखा गया है, जिसमें अस्पतालों से निकलने वाले अपशिष्टों को रखा जाता है। कंपनी की गाड़ी आती है और उसे ले जाती है।
डा. एके राय
मुख्य चिकित्सा अधीक्षक
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जनपद के सभी सीएचसी, पीएचसी व प्राइवेट अस्पतालों में कचरा प्रबंधन की व्यवस्था है। इसके लिए चिकित्सकों, स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षण देकर निर्देशों का अनुपालन करने की हिदायत भी दी गई है। सड़कों पर कूड़ा फेंकने की कहीं जानकारी नहीं है।
डा. आइए अंसारी
अपर मुख्य चिकित्साधिकारी
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बीमारियां फैला रहा कचरा
महराजगंज: अस्पतालों से निकलने वाला कचरा कई प्रकार होता है, जिससे अनके बीमारियां फैलती हैं। इसमें संक्रमित कचरे के साथ ही रसायनिक व कई बार रेडियोएक्टिव कचरा भी होता है। संक्रमित कचरे में अस्पताल के वार्डों आपरेशन थियेटर से निकला कचरा होता है। इसमें खून का अन्य शारीरिक द्रव्य से सनी रूई पट्टी होती है। प्लास्टिक के सामान सूई, बोतल, ट्यूब, दास्ताना आदि शामिल है।
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यहां तो कचरे का हिसाब ही नहीं
महराजगंज : जिला अस्पताल में प्रत्येक दिन करीब 50 किलो कचरा निकलता है, जबकि सीएचसी, पीएचसी से निकलने वाले कचरे का हिसाब ही स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं है। यह अलग है कि विभाग इसके लिए प्रत्येक बेड के हिसाब से 540 रुपये भुगतान करता है।
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