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संकट से जूझ रहे किसानों के लिए मुसीबत बनी खेती

गेहूं की बोआई के ऐन वक्त पर क्षेत्र की साधन सहकारी समितियों पर तालाबंदी से किसानों को दोहरे संकट का सामना करना पड़ रहा है। आलम यह है कि न तो सरकारी समर्थन मूल्य पर उनके धान की तौल हो पा रहा है और न ही उचित दर पर खाद-बीज की जरुरत ही पूरी हो पा रही।

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 10:35 PM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 10:35 PM (IST)
संकट से जूझ रहे किसानों के लिए मुसीबत बनी खेती
संकट से जूझ रहे किसानों के लिए मुसीबत बनी खेती

महराजगंज: गेहूं की बोआई के ऐन वक्त पर क्षेत्र की साधन सहकारी समितियों पर तालाबंदी से किसानों को दोहरे संकट का सामना करना पड़ रहा है। आलम यह है कि न तो सरकारी समर्थन मूल्य पर उनके धान की तौल हो पा रहा है और न ही उचित दर पर खाद-बीज की जरुरत ही पूरी हो पा रही। ऐसे में मजबूर किसान किससे अपनी व्यथा कहें, उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। परेशानियों से दो चार हो रहे किसानों का कहना है कि प्रदेश की मौजूदा सरकार से भी उनकी उम्मीदें टूटती जा रही हैं। खेती के सहारे अपनी जीविका चलाने वाले किसान हर साल की तरह इस साल भी खाद-बीज के गंभीर संकट से जूझ रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि साधन सहकारी समिति के सचिवों के प्रदेश व्यापी हड़ताल के कारण क्षेत्र के देवघट्टी, सिरसिया, गजरही, मंगलापुर व तरैनी आदि समितियों पर ताले लगे हुए हैं। यही कारण है कि खाद व बीज के लिए समितियों पर जाने वाले किसान समिति के गोदाम पर ताला जड़ा देख निराश होकर वापस घर लौट आ रहे हैं।इतना ही नहीं क्रय केंद्रों पर धान की तौल न होने से किसानों को पांच से छह सौ रुपये की कम कीमत पर बिचौलियों के हाथों अपनी उपज बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। गेहूं के बोओई हेतु उचित दर पर यूरिया व डीएपी खाद न मिलने से किसान निजी दुकानों का चक्कर लगाने मजबूर हैं। फिर भी उन्हें यह खाद आसानी से मिलने वाली नहीं है। बताया जाता है कि निजी दुकानों पर आई खाद की एक बड़ी खेप विभागीय साठगांठ से तस्करों व खाद के पेशेवर कारोबारियों के हवाले कर दी जा रही है। सुबह से शाम तक टेंपों व पिकअप गाड़ियों में भरकर नेपाल सरहद की और दौड़ती बिना नंबर प्लेट की गाड़ियों को देखकर यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस बार भी कृषि विभाग, कस्टम व सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े लोग खाद की तस्करी को रोकने में पूरी तरह से विफल साबित हो रहे हैं। जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है।

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