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भंडारे में शामिल हुए 5000 लोग, दिया समरसता का संदेश

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भंडारा आपसी समरसता बढ़ाने का सबसे सरल तरीका है। इसी भंडारे से महंत अवेद्यनाथ ने वाराणसी में जाति-पाति और छुआछूत की परंपरा को तोड़ने की पहल की थी। गुरुदेव महंत अवेद्यनाथ ने 1977 में वाराणसी में डोम राजा के वहां साधु-संतों की मंडली के साथ भोजन किया था।

By JagranEdited By: Published: Sat, 25 Sep 2021 01:20 AM (IST)Updated: Sat, 25 Sep 2021 01:20 AM (IST)
भंडारे में शामिल हुए  5000 लोग, दिया समरसता का संदेश
भंडारे में शामिल हुए 5000 लोग, दिया समरसता का संदेश

महराजगंज: चौक में ब्रह्मालीन महंत अवेद्यनाथ की प्रतिमा के अनावरण के बाद आयोजित भंडारे में पांच हजार से अधिक लोगों ने सम्मिलित होकर समरसता का संदेश दिया। नाथ संप्रदाय की परंपरा के मुताबिक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भंडारे में पहुंच भगवान को भोग लगाया, और प्रसाद भी ग्रहण किया। इसके बाद भंडारे का शुभारंभ् हुआ।

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भंडारा आपसी समरसता बढ़ाने का सबसे सरल तरीका है। इसी भंडारे से महंत अवेद्यनाथ ने वाराणसी में जाति-पाति और छुआछूत की परंपरा को तोड़ने की पहल की थी। गुरुदेव महंत अवेद्यनाथ ने 1977 में वाराणसी में डोम राजा के वहां साधु-संतों की मंडली के साथ भोजन किया था। इसी परंपरा को जीवंत करने एवं उनके सांतवीं पुण्यतिथि पर आज यहां भी भंडारे का आयोजन किया गया है। चौक स्थित गुरु गोरक्षनाथ मंदिर स्थित छावनी के प्रभारी त्यागीनाथ जी महाराज ने बताया कि आयोजित भंडारे में कुल पांच हजार से अधिक लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया।

महंत अवेद्यनाथ ने चौक क्षेत्र में जलाई थी शिक्षा की ज्योति

महराजगंज: महंत अवेद्यनाथ ने महराजगंज विशेषकर चौक क्षेत्र में शिक्षा की ज्योति जलाई थी। उनके निर्देशन में चौक के नगर वासियों के लिए उच्च शिक्षा के लिए महाविद्यालय की भी स्थापना कराई गई। शुक्रवार को कार्यक्रम को संबोधित करते हुए खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बताया कि चौक बाजार क्षेत्र से ब्रह्मालीन महंत अवेद्यनाथ जी का विशेष लगाव था। जब यहां शिक्षा का कोई भी केंद्र नहीं था, तब ब्रह्मालीन गुरु दिग्विजयनाथ के नाम पर पूज्य अवेद्यनाथ ने इंटर कालेज की स्थापना की। जिससे यहां के शिक्षा स्तर ऊपर हुआ। बाद में बालिकाओं के लिए डिग्री कालेज भी उन्ही के प्रयासों से संभव हुआ। जिस डिग्री को प्राप्त करने के लिए छात्र-छात्राओं को पहले 70 किलोमीटर दूर गोरखपुर जाना पड़ता था, आज वह यहीं उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।


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