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अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृतियों को सूबे में संजोएगी योगी आदित्यनाथ सरकार

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा अटलजी का गांव आगरा के बटेश्वर में है, इसके साथ ही वह कानपुर के डीएवी कॉलेज में पढ़े।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Fri, 17 Aug 2018 05:25 PM (IST)Updated: Fri, 17 Aug 2018 06:25 PM (IST)
अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृतियों को सूबे में संजोएगी योगी आदित्यनाथ सरकार
अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृतियों को सूबे में संजोएगी योगी आदित्यनाथ सरकार

लखनऊ (जेएनएन)। पूर्व प्रधानमंत्री तथा बलरामपुर के बाद लखनऊ से भारतीय जनता पार्टी के सांसद रहे स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृतियों को प्रदेश में संजोने का काम योगी आदित्यनाथ सरकार करेगी। उनका प्रदेश की राजधानी से रिश्ता काफी लंबा तथा बेहद करीबी था।

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पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर पूरा देश शोकाकुल है। वैसे तो अटल बिहारी वाजपेयी देश के सर्वमान्य नेता रहे, लेकिन उनका उत्तर प्रदेश से खासा ही लगाव। उनका जन्म 24 दिसम्बर 1924 को भले ही ग्वालियर में हुआ था, लेकिन उनका पैतृक घर आगरा के बटेश्वर में है। अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के बाद से उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने उत्तर प्रदेश से जुड़ी उनकी सभी स्मृतियों को संजोने का ऐलान किया है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा अटलजी का गांव आगरा के बटेश्वर में है, इसके साथ ही वह कानपुर के डीएवी कॉलेज में पढ़े। प्रदेश के बलरामपुर से पहली बार सांसद बने और लखनऊ से बतौर सांसद प्रधानमंत्री बने। उत्तर प्रदेश सरकार उनकी यूपी से जुड़ीं हर स्मृतियों को सदा के लिए संजोकर रखेगी।

स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने 1942 में कानपुर से राजनीति शास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की और यहीं से संघ के संपर्क में आए। इसी के बाद 1947 में वह लखनऊ और उत्तर प्रदेश के होकर रह गए। जनसंघ की स्थापना के बाद 1957 में बलरामपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा। पहली बार संसद पहुंचे। इसके बाद उन्होंने यहां से तीन बार चुनाव लड़ा। 1962 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 1967 में एक बार फिर लोकसभा के लिए चुने गए। इमरजेंसी के बाद अटलजी ने राजधानी लखनऊ को अपनी कर्मभूमि बनाई और 2004 तक लगातार यहां से सांसद रहे।

नवाबी शहर लखनऊ से स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी से रिश्ता सात दशक पुराना रहा। यहां की गलियां, चौराहे, सत्ता के गलियारे अटल की सभाओं, बैठकी, आवाजाही के गवाह रहे हैं। कहीं माइक लेकर अकेले ही अमीनाबाद के झंडे वाले पार्क में भीड़ को संबोधित करते दिखते थे अटल तो कभी चौक की प्रसिद्ध राजा ठंडई की दुकान पर साथियों के साथ देर शाम बैठकी करते। कभी गोमती नदी में नाव पर सैर करते दिखते तो कभी साइकिल से सैर करते दिखते।

अटल बिहारी वाजपेयी 1947 में ग्वालियर से लखनऊ आए. यहीं से वह पत्रकार और फिर आगे चलकर राजनेता बने। इसी बीच कविता लेखन तथा पाठ का दौर भी जारी रहा। उन्हें लखनऊ से ही प्रकाशित राष्ट्रधर्म पत्रिका के संपादन की जिम्मेदारी मिली। लखनऊ में कोई ठिकाना नहीं था। अटल कुछ समय अपने सहयोगी बजरंग शरण तिवारी के घर पर रहे। इसके बाद कुछ वक्त वह किसान संघ भवन में भी रुके। अपने मित्र कृष्ण गोपाल के घर पर गन्ने वाली गली में रहे। लखनऊ से सांसद बनने के बाद अटल काफी वक्त मीराबाई मार्ग के विधायक गेस्ट हाउस में रहे। इसके बाद में उन्हें ला प्लास कॉलोनी में आवास आवंटित हो गया। अब सूबे की योगी आदित्यनाथ सरकार अटल से जुड़ीं इन सभी स्मृतियों को सदा के लिए संजोने की तैयारी में लगी है।  


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