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मरीज को न चढ़ाएं होल ब्लड, हो सकते हैं साइड इफेक्ट्स

डॉ.राम मनोहर लोहिया अस्पताल में रेशनल यूज ऑफ ब्लड एंड ब्लड कंपोनेंट्स पर आयोजित हुई कार्यशला।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 16 Mar 2019 06:43 PM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2019 06:43 PM (IST)
मरीज को न चढ़ाएं होल ब्लड, हो सकते हैं साइड इफेक्ट्स

लखनऊ, जेएनएन। मरीज को कभी होल ब्लड नहीं चढ़ाना चाहिए। इसके काफी नुकसान  होते हैं। होल ब्लड के स्थान पर ब्लड कंपोनेंट के रूप में चढऩा चाहिए।  मरीज की जरूरत के अनुसार ही ब्लड कंपोनेंट्स क्रॉस मैच करके चढ़ाए जाने चाहिए। होल ब्लड चढ़ाने से मरीज को साइड इफेक्ट हो सकते हैं। कई मामले जैसे सीवियर एनिमिया में हार्ट पर भी प्रभाव पड़ सकता है। जिससे जान जाने का खतरा भी रहता है। यह जानकारी डॉ.राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट के ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की हेड डॉ.प्रीति एलिहेंज ने दी।

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बीमारी और व्यक्ति की डायग्नोस के आधार पर चढ़ाएं ब्लड कंपोनेंट्स

डॉ.प्रीति ने बताया कि ब्लड ट्रांसफ्यूजन को लेकर गाइडलाइन जारी हो गई है। अब किसी भी अस्पताल में होल ब्लड के इस्तेमाल पर रोक लग चुकी है। एक होल ब्लड से चार कंपोनेंट्स आरबीसी, फ्रेश फ्रोजेन प्लाज्मा और पेक्ड रेड ब्लड सेल और रेनडम डोनर से क्रायो प्रेसीपीटेट बनते हैं।

एफेरोसिस तकनीक सिंगल डोनर से ली जाती है प्लाज्मा और प्लेटलेट

डॉ.प्रीति ने बताया कि एफेरोसिस सेपरेटर से सिंगल डोनर का होल ब्लड न लेकर सीधे ही प्लाज्मा और प्लेटलेट डोनेट की जाती है। इसका फायदा यह है कि मरीज को होल ब्लड नहीं देना पड़ता है। आमतौर पर ब्लड डोनेट करने पर दूसरे डोनेशन में तीन माह का समय लगता है जबकि इसमें मरीज दूसरे सप्ताह फिर से डोनेशन कर सकता है। एफेरोसिस तकनीक से निकाली गई प्लेटलेट्स छह रेनडम डोनर के बराबर होती है।

ब्लड लेते समय रखें यह सावधानी

डॉ.प्रीति ने बताया कि तीमारदार को भी ब्लड बैंक से ब्लड लेते समय कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए। कंपेटिब्लीटी लेवल चैक करना चाहिए, मरीज का नाम ब्लड ग्रुप मैच फार्म जरूर चैक करना चाहिए। इसके साथ ही ट्रांसफ्यूजन सेट भी यूज करना होता है। कोई भी ब्लड कंपोनेंट चार घंटे के अंदर चढ़ जाना चाहिए। ऐसा न होने पर मरीज को संक्रमण का खतरा होता है। वहीं ब्लड चढऩे से पहले, चढऩे के दौरान और बाद में मरीज का ब्लड प्रेशर जरूर चैक होना चाहिए।

होल ब्लड में खराब हो जाती है प्लाज्मा और प्लेटलेट्स

डॉ.प्रीति ने बताया कि होल ब्लड को चार डिग्री के तापमान पर रखा जाता है। वहीं प्लेटलेट को 22 डिग्री के तापमान पर एक मूविंग कंटेनर में रखा जाता है। वहीं होल ब्लड 42 दिन तक सुरक्षित रहती है और प्लेटलेट पांच दिन में खराब हो जाती है। इसलिए होल ब्लड में ब्लड के अन्य कंपोनेंट्स खराब हो जाते हैं। कार्यक्रम का उद्घाटन लोहिया संस्थान के निदेशक डॉ.एके त्रिपाठी, लोहिया अस्पताल के निदेशक डॉ.डीएस नेगी, ब्लड बैंक के प्रभारी डॉ.वीके शर्मा मौजूद रहे।


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