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उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की भर्तियों में सामने आ सकता है व्यापम जैसा घोटाला

पहले 10 साल तक कापियों की संरक्षित रखने की व्यवस्था थी लेकिन, अनिल यादव ने इसे तीन साल का और बाद में एक साल का कर दिया।

By amal chowdhuryEdited By: Published: Thu, 27 Jul 2017 11:25 AM (IST)Updated: Thu, 27 Jul 2017 11:25 AM (IST)
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की भर्तियों में सामने आ सकता है व्यापम जैसा घोटाला
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की भर्तियों में सामने आ सकता है व्यापम जैसा घोटाला

लखनऊ (हरिशंकर मिश्र)। समाजवादी पार्टी के शासनकाल में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में हुई भर्तियों के साक्ष्य नष्ट करने की कोशिशें जरूर हुई हैं लेकिन सीबीआइ जांच में व्यापम जैसा घोटाला सामने आ सकता है। लिखित परीक्षा में कम अंकों के बावजूद साक्षात्कार में अंक बढ़ाकर ओवरलैपिंग, अभ्यर्थियों की कापियों का बदला जाना, सफल छात्रों के नाम छिपाकर सिर्फ अनुक्रमांक के आधार पर परिणाम घोषित करना जैसे कई बिंदु हैं जो जांच को दिशा देंगे।

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इसके साथ ही यदि अध्यक्ष व सदस्यों की आय और उनकी संपत्तियों पर ध्यान केंद्रित किया गया तो कई अफसरों का जेल जाना भी लगभग तय माना जा रहा है। आयोग में डा. अनिल यादव का अध्यक्षीय कार्यकाल ही सबसे अधिक विवादित है और सीबीआइ की जांच के केंद्र में इस दौरान घोषित परिणाम विशेष रूप से होंगे।

इस कार्यकाल में ही पीसीएस-2011 और 2012 के कार्यकाल की कापियां नष्ट की गई हैं। पहले 10 साल तक कापियों की संरक्षित रखने की व्यवस्था थी लेकिन, अनिल यादव ने इसे तीन साल का और बाद में एक साल का कर दिया। सूत्रों के अनुसार यह फैसला लेने में भी नियमों की अनदेखी की गई क्योंकि सचिव और सेक्शन आफिसर के अनुमोदन के बिना ऐसा नहीं किया जा सकता।

इसके साथ ही स्केलिंग का मामला है। स्केलिंग की व्यवस्था अलग-अलग विषयों को लेकर परीक्षा दे रहे अभ्यर्थियों को एक समान प्लेटफार्म उपलब्ध कराने के उद्देश्य से की गई है। भारतीय प्रशासनिक सेवा में इसको लेकर विवाद नहीं खड़े होते लेकिन पीसीएस परीक्षाओं में अभ्यर्थियों ने इसमें भेदभाव का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के सचिव अवनीश पांडेय बताते हैं कि स्केलिंग का एक अंक बहुत बड़ा अंतर पैदा कर देता है।

जांच में यदि चयनित अभ्यर्थियों को ही आमने-सामने कर दिया गया तो भर्तियों की कलई खुल जाएगी। जांच के दायरे में पिछले पांच साल की नियुक्तियां जरूर हैं लेकिन इसके तार आयोग में पदस्थ सदस्यों से भी जुड़ेंगे। मुख्य परीक्षाओं से ध्यान हटाकर आयोग का फोकस विशेष तौर पर सीधी भर्ती की परीक्षाओं पर रहा।

20 हजार से अधिक सीधी भर्ती की नियुक्तियों का अनुमान है। इससे जुड़े कई मामले हाईकोर्ट में भी लंबित हैं। सूत्रों के अनुसार इलाहाबाद हाईकोर्ट में ही 722 मुकदमे दायर हैं जिनमें पांच जनहित याचिकाएं हैं।

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जांच में ये बिंदु होंगे अहम:
- इंटरव्यू में अधिक नंबर देकर चयन
- बदल दी गई मेधावियों की कॉपियां
- विभिन्न पदों पर स्केलिंग में खेल
- बदला इंटरव्यू का कोडिंग सिस्टम
- परीक्षा केंद्रों के निर्धारण में मनमानी
- विशेषज्ञों का पैनल बनाने में गड़बड़ी
- आरक्षित पदों में बदलाव का फैसला
- सामान्य के पदों पर ओबीसी का चयन
- मुख्य परीक्षा की कापियों को नष्ट करना
- पीसीएस-2015 का पेपर आउट होना
- त्रिस्तरीय आरक्षण का फैसला करना
- परिणाम के साथ जाति न लिखना
- नंबर देखने की ओटीपी व्यवस्था
- संशोधित उत्तर कुंजी जारी न करना

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